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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाते हैं, इच्छाके बिना व्यक्ति घिसट जाता है। हम ऐसे हजारों अपराधोंके लिए ईश्वरसे कृपाकी याचना करते हैं। इसलिए जिस व्यक्तिको विश्वास हो गया है कि वासनाओंका दमन किया ही जाना चाहिए और फिर वह व्यक्ति उपवास करता है, तो इसमें बुराईकी कोई बात नहीं है। यदि वह व्यक्ति आस्था रखेगा, तो अवश्य पार लगेगा। न लगे, तो ईश्वरका कौल झूठा हो जायेगा। किन्तु अनुभव तो यह है कि ईश्वरका कौल झूठा नहीं पड़ता। दस, बीस, चालीस उपवास करके हार नहीं माननी चाहिए। गिबनने[१] [ अपने इतिहासमें ] एक भी बात बिना गहरी खोज किये नहीं लिखी। उसने कैथोलिक सम्प्रदायमें लगातार पचास-पचास दिनोंतक उपवास करनेवाले व्यक्तियोंका उल्लेख किया है। उन्होंने उस हदतक इन्द्रिय-दमन भी अवश्य किया होगा। किन्तु इस कठिन कालमें लोग ऐसा मानने लगते हैं कि पाँच दिन उपवास करते हुए हो गये, कोई फल नहीं मिला! ऐसा नहीं मानना चाहिए कि रस आसानीसे समाप्त हो जाता है। रस समाप्त न हो और बिना खाये रहा भी न जाये तो खुराक ले ली जा सकती है, किन्तु हार नहीं माननी चाहिए। बादमें फिर उपवास शुरू करना चाहिए। इस सत्यमें बरबाद हो जानेमें भी जीत ही है। दस बार निष्फल होंगे, बीस बार निष्फल होंगे, किन्तु अड़े रहें तो अन्तमें जीत ही है। इस बातकी ऐसी जबरदस्त खूबी है। इसीलिए मैंने यह कहा। जो बात रोमन कैथोलिक सम्प्रदायमें देखी जाती है वही इस्लाममें भी है। जो आज पाखण्ड फैला रहे हैं, वे इस्लामको थोड़े ही समझते हैं। किन्तु जो एकान्तमें पड़े-पड़े इबादत करते हैं, उन्हें साक्षात्कार अवश्य होता है। वे तो भोग-मात्रको छोड़ देते हैं। भोग और त्याग साथ-साथ नहीं चल सकते। खानेका प्रयोग तो केवल देहका किराया चुकाने जैसा है। यदि हम यह बात समझ लें तो 'गीता' समझने योग्य बन जायेंगे।

एक दूसरी बात (जिसके विषयमें आज अधिक नहीं कहूँगा) वह यह है कि 'गीता' के गायकने सिद्धान्तोंको बेधड़क कह दिया है। यदि हम इन सिद्धान्तोंकी छानबीन करें तो वे सदोष सिद्ध नहीं होते। किन्तु उन्हें अमलमें लाते हुए कठिनाई होती है। किन्तु इसके बारेमें आगे कहूँगा। इस प्रकार विषयोंके बारेमें कह चुकनेपर दूसरा श्लोक आता है।

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः॥(२,६०)

प्रयत्न करते हुए भी बुद्धिमान पुरुषकी इन्द्रियाँ विक्षिप्त आचरण करती हैं। वे उसे विचलित कर देती हैं। बलात् मनका हरण कर लेती हैं। ज्ञानी पुरुषको भी खींच कर ले जाती हैं। इन्द्रियाँ मुँहजोर घोड़ेकी तरह हैं। सारथी सावधान न हो, बागडोर ठीक न हो, तो वह मनुष्यको कहीं-कहींको ले जायें। "मरकट तिसपर मदिरा पिये हुए" ऐसी स्थिति है।

  1. एडवर्ड गिवन ( १७३३-९४ ); रोमन साम्राज्यके पतन सम्बन्धी इतिहासके प्रसिद्ध लेखक|