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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसने अपने हाथ जलाये जानेके लिए पहले ही सामने कर दिये थे। हजरत अलीको तीरकी पीड़ाका भान नहीं हुआ, क्योंकि उनका मन तो ईश्वरके ध्यानमें लीन हो गया था। जो व्यक्ति इन्द्रियोंके हाथ बिक नहीं गया है, बल्कि जो ईश्वरका दास बन गया है, उसे ईश्वर इनाम (प्रसाद) माँगनेका अधिकार नहीं है। दुनियाका सरदार बननेके बजाय जो ईश्वरका गुलाम बन गया है, वह ईश्वरके कोड़े खाते हुए भी यही मानेगा कि ये कोड़े हितके लिए मारे जा रहे हैं। हम ऐसी प्रार्थना क्यों करते हैं कि हे प्रभु, हमारे प्राणोंको और भी प्राणवन्त बना। ईश्वरका मनुष्यको रचनेमें स्वार्थ है — दिव्य स्वार्थ है और वह यह कि व्यक्तिको अपनी इन्द्रियोंसे कुछ भी निसबत न रहे, बल्कि वह ईश्वरका ही ध्यान करता हुआ उसकी ही सेवामें रहे। यह तो सिद्धान्तकी बात हुई। व्यवहारमें व्यक्तिको चाहिए कि जो अच्छा है, उसे स्वीकार करे। दिव्य गान न सुन पाता हो, तो अच्छे गान सुने। ऐसे काम करे जिससे आत्माके साथ अनुकूलता प्राप्त होती हो। जबतक आदमीको विवेकसे काम लेना है, तबतक उसे चाहिए कि वह अच्छेको चुने, बुरेको छोड़े। परिणामस्वरूप इन्द्रियोंको स्वाभाविक क्रिया सध जायेगी। यदि व्यक्ति ऐसा करे, तो

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।(२,६५)

ईश्वरकी कृपासे शान्ति प्राप्त हो जानेपर सभीदुःखोंका नाश हो जाता है। जिसे राम रखे उसे कौन मार सकता है। जिसके ऊपर ईश्वरकी कृपा बरसती ही रहती है, उसके सारे दुःखोंकी हानि (नाश) हो जाती है। जिस व्यक्तिका चित्त शान्ति पा गया है, जिसमें ईश्वर ही रमता रहता है, उसकी बुद्धि स्थिर और सुरक्षित हो जाती है। अब इससे उलटी स्थितिका वर्णन है:

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्।।(२,६६)

इसलिए जो ईश्वरके साथ युक्त नहीं है, जो समाधिस्थ योगी नहीं है, उसके बुद्धि ही नहीं है। अव्यवसायीकी बुद्धिकी तो अनेक शाखाएँ होती हैं, इसलिए वह बुद्धि ही किस काम की। उसमें भावना उत्पन्न नहीं हो सकती। उसके हृदयमें से राम-नाम नहीं निकलता। जिसमें यह भावना-ध्यान नहीं है, उसे शान्ति कैसी? भावनायुक्त व्यक्ति ध्यानस्थ होकर बैठ सकता है, किन्तु अशान्तको सुख कहाँसे मिले?

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मंगलवार, ६ अप्रैल, १९२६

'गीता' का पाठ प्रारम्भ करनेके पहले उसके पदार्थ पाठकी थोड़ी चर्चा कर लें। आज छठवीं तारीख' है। यह तारीख[१] हिन्दुस्तानके जागनेकी तारीख है। में ऐसा मानता

  1. ६-४-१९१९ को रौलट एक्टके विरुद्ध सारे देशमें हड़ताल की गई थी। देखिए खण्ड १५, पृष्ठ १८९-९४।