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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं
समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे
स शान्तिमाप्नोति न कामकामी॥(२,७०)

समुद्र हमेशा भरा जाता रहनेपर भी अचल रहता है, अनेक नदियोंका पानी उसमें आता रहता है, फिर भी वह पहले जहाँ स्थिर था, वहाँ स्थिर रहता है। इसी तरह जिस व्यक्तिके भीतर अनेक प्रकारके विकार शमित हो जाते हैं वह योगी है। जो मनुष्य कामी है अर्थात् जिसकी इन्द्रियाँ जहाँ-तहाँ भटकती रहती हैं वह मनुष्य योगी नहीं है। जो व्यक्ति समुद्रकी तरह रह सकता है, नदी-नालोंकी तरह नहीं जो कि भर जाते हैं और सूख जाते हैं, वहीं मनुष्य योगी है। भक्तराज [ 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' का क्रिश्चियन ] भी योगी और ध्यानी था। उसके स्वरमें एक ही ध्वनि होती थी। नहाते, खाते, पीते जिसका मन भगवान्‌में ही है उसके मनमें विकार कहाँसे आयेंगे। वह समुद्रकी सरह भरा हुआ है। नदी, नाले उसमें पहुँचकर शान्त हो जाते हैं और स्वच्छ हो जाते हैं। यदि समुद्रमें नदी-नालोंका मैल व्यापता होता, तो क्या समुद्र स्वच्छ रह सकता था? किन्तु हम तो उसके किनारेपर अच्छी और स्वच्छ हवा लेने जाते हैं। योगीके मन-रूपी सागरमें विकार मात्र लुप्त हो जाते हैं।

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति॥(२,७१)

सब कामनाओंको छोड़कर जो मनुष्य निःस्पृह रहकर आचरण करता है, वह ऐसी शान्ति प्राप्त कर सकता है। वह निर्मम और निरहंकार होकर उस शान्तिको प्राप्त करता है। अमुक काम मैं कर रहा हूँ, जिस व्यक्तिमें ऐसा भाव नहीं है, वही सच्चा योगी है।

एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति॥(२,७२)

जो ब्रह्मकी पहचान करा सकती है, सो ब्राह्मीस्थिति। इसे पा लेनेके बाद मनुष्य मोहमें नहीं पड़ता। ईश्वरका दर्शन हो जानेपर विषयोंका रस चला जाता है यह बात कही जा चुकी है। इसी तरह श्रीकृष्ण यहाँ फिरसे वही कहते हैं कि ब्राह्मी स्थितिको पा जानेके बाद व्यक्ति मोहग्रस्त नहीं होता। अन्तकालमें इस स्थितिके रहनेपर व्यक्ति ब्रह्मनिर्वाण पा जाता। इसके दो अर्थ हुए एक यह अर्थ कि अन्तकालमें भी ऐसी वृत्ति हो जाये तो ब्रह्मकी प्राप्ति हो जाती है और दूसरा अर्थ यह कि जिसकी अन्तकालतक ऐसी स्थिति बनी रहती है, उसे शान्ति मिलती है। जो आजतक दुष्ट रहा हो और कल अच्छा हो जाये तो फिर बाकी ही क्या बचा और सारी जिन्दगी अच्छा रहा हो किन्तु बादमें दुष्ट हो जाये तो उसका वह अच्छा रहना निरर्थक हुआ। बात ऐसी है कि जो अन्ततक टिका रहता है वही व्यक्ति अच्छा कहलाता है। इसीलिए कहावत है कि किसी भी मनुष्यको उसकी मृत्यु पर्यन्त