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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए जितना जानना आवश्यक हो, और जितना परिग्रह आवश्यक हो, उतना करके निश्चिन्त हो जाना चाहिए।

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रविवार, १८ अप्रैल, १९२६

यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येव च संतुष्टस्तस्य कार्य न विद्यते॥
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः।(३,१७-१८)

जो मनुष्य आत्मामें ही सुख मानता है, आत्माराम है, आत्मतृप्त है और आत्मामें ही सन्तुष्ट है, ऐसे मनुष्यके लिए कुछ भी करना शेष नहीं रहता।

ऐसे व्यक्तिके लिए कुछ करना शेष नहीं है। न ऐसा ही है कि वह कुछ करता नहीं है। उसके लिए तो करने और न करने में कोई अन्तर ही नहीं है। वह दोनों ही बातोंके प्रति समान रूपसे उदासीन है। प्राणियोंके द्वारा उसे कोई उद्देश्य सिद्ध नहीं करना है।

दोनों ही श्लोकोंमें ऐसा लगता है, जैसे एक ही बात कही गई हो। यदि हम पूरी तरह न सोचें तो ऊपर जो श्लोक हो चुके हैं, ये श्लोक उनके विरोधमें लगते हैं। पहले यह कहा गया है कि जो प्रवर्तित चक्रको नहीं चलाता, वह पापी और इन्द्रियाराम है। किन्तु यहाँ आत्मतृप्त मनुष्यकी बात कही गई है और कहा है कि उसके लिए कोई कर्त्तव्य शेष नहीं बचता। यह बात कि सेवा-वृत्तिसे काम करनेवाला आदमी आत्मतृप्त हो जाता है और उसे कुछ करना शेष नहीं रहता, परस्पर उलटी बातें लगती हैं। किन्तु बात ऐसी ही है। किसी चींटीको गोलेपर बिठला दिया जाये, और गोलेको लगातार घुमाते रहें तो चींटीके लिए कुछ करना शेष नहीं रहता। वह तो अपने-आपमें सन्तुष्ट होकर बैठी रहेगी। वह कहेगी कि गोला घूम रहा है और मुझे तदनुसार आचरण करना है। किन्तु यदि उस गोलेमें कोई बमीठा बना हो और उसे वहाँ पहुँचना भी हो, तो वह कहेगी कि वहाँ जाना घूमते हुए चक्रके अन्दर जाना है, इसमें मेरे कर्त्तव्य-अकर्त्तव्यकी क्या बात है। कैदीका क्या कर्त्तव्य है? हुक्मका पालन करना। आत्माराम व्यक्ति आत्माका दास बनकर सन्तुष्ट हो जाता है और आत्माके आदेशका पालन करता है। इसीलिए वह आत्मरत है, आत्मसन्तुष्ट है। (यदि कैदी सत्याग्रही हुआ तो वह कहेगा कि में इस व्यक्तिकी आज्ञा मानकर ही इसपर विजय पा लूँगा।) यदि वह व्यक्ति आत्माकी आवाजको ही सुनता रहे और प्रवर्तित चक्र के अनुसार ही चलता रहे, तो फिर उसे करना ही क्या है। टॉल्स्टॉयने ऐसी ही कुछ बात लिखी है। वह कहता है कि आदमी मूर्ख है; वह दम्भ करता है, 'मैं यह करूँगा, वह करूँगा। लोगोंके दुःखका निवारण करूँगा' इत्यादि। किन्तु उसका कहना है कि तू लोगोंके कन्धेपर चढ़कर बैठा है, वहाँसे उतर जा। इतना ही पर्याप्त है। फिर जिसके कन्धेपर वह चढ़कर बैठा था, उसे भी कुछ करना शेष नहीं