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'गीता-शिक्षण'

रहता। हम गरीबोंके कन्धेपर बैठे हुए हैं। हमारा इतना ही कर्त्तव्य है कि हम उनके कन्धोंसे उतर जायें। यदि हम अपनी आत्माकी आवाजके अनुसार चलते हैं तो कुछ करना शेष नहीं बचता; और यह इसलिए कि हम जो सहज स्वभावसे करते हैं, उसका हमें भान ही नहीं रहता।

इस तरह ऊपर यज्ञ न करनेवालेको इन्द्रियाराम, आलसियोंका सरदार कहा गया; और दूसरेको जो प्रतिक्षण काम करता रहता है, आत्मतृप्त कहा। वह इतना कार्य करता है और सो भी सहज भावसे कि उसके लिए कर्त्तव्य शेष ही नहीं रहता।

पण्डितजीने जो प्रश्न किया मैं उसका आशय अधिक अच्छी तरह समझता हूँ। उन्होंने पूछा, 'गीता' वर्षाकी बात किसलिए करती है। वह कहना यह चाहते थे कि आत्मासम्बन्धी ग्रन्थमें तो आत्माकी बात ही होनी चाहिए। 'गीता' हमें जीव-जन्तु, पशु-पक्षी और अन्तमें वर्षातक ले जाती है और कहती है कि जितना शरीरश्रम करना चाहिए, यदि मनुष्य उतना शरीर-श्रम करे तो मुँह-माँगी वर्षाका लाभ होगा। हम ऐसा कोई छोटा-मोटा नियम इससे निकाल सकते हैं।

क्या वर्षाका हमारे पाप-पुण्यसे कोई सम्बन्ध हो सकता है? हो सकता है; किन्तु हमें उसकी खबर नहीं है। यदि हम मुख्य वस्तुके बारेमें कुछ बातें जान लें तो उसके विषयमें सभी कुछ जान लेंगे। दृश्य पदार्थोंसे हम अदृश्योंका अनुमान लगा लेते हैं। उदाहरणके लिए यदि हम चलते ही चले जायें, तो हमारी आत्माको भी इस चक्रका अनुसरण करना पड़ेगा। जैसा एक कामके विषयमें, वैसा दूसरे कामोंके विषय में भी समझिए। इस दृष्टिसे नियम यह है कि हमें अपवादरहित नियमकी खोज करनी चाहिए। दृष्टान्तस्वरूप, पानीमें एक भाग आक्सीजन और दो भाग हाइड्रोजन हो, तभी वह पानी कहलाता है। इस बातका कोई अपवाद नहीं है। इसी तरह समकोण भी ९० अंशका ही होता है, न कम, न ज्यादा। इसलिए यदि हम यह जान लें कि 'एवं प्रवर्तितम् चक्रम्' एक निरपवाद नियम है, तो फिर हमें कोई परेशानी नहीं होगी। यहाँ पहले भौतिक नियम बताकर आध्यात्मिक नियम सूचित किया गया है।

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मंगलवार, २० अप्रैल, १९२६

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥(३,१९)

असक्त रहकर काम किया कर। क्योंकि असक्त रहकर कार्यरत पुरुष श्रेय प्राप्त करता है, मोक्ष प्राप्त करता है। इन श्लोकोंके अलग-अलग अर्थ होते हैं। किन्तु ऐसा नहीं है कि उनमें कोई अर्थ ज्ञानीपर लागू होता हो, और अन्य सामान्य साधकपर। एक ही श्लोक दोनोंपर लागू किया जा सकता है। 'गीता' भी तो बाहर और भीतरके युद्धपर लागू हो सकती है। इसलिए यहाँ अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति