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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निर्मम और निरहंकार हो गया है, उसके विषयमें कहा जा सकता है कि कर्म उसके लिए शेष नहीं बचे। वह व्यक्ति अन्य व्यक्तियोंके समान कार्य करते हुए भी कुछ नहीं करता।

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि॥(३,२०)

कर्मसे ही जनक इत्यादिने सिद्धि पाई। इसलिए लोकसंग्रहका विचार करके भी मनुष्यको कर्म करना चाहिए। जनकको समाचार दिया गया कि नगर जल रहा है। जनकने सिर्फ इतना ही कहा कि यदि जल रहा है तो क्या हुआ। जो आग बुझानेका काम संचालित करता हो, वह अगर यन्त्रोंके पास खड़ा खड़ा अथवा पड़ा-पड़ा भी हुक्म दे, तो वैसा हो सकता है। अलबत्ता उसे रहना वहीं चाहिए। यदि कोई उसे उस समय आकर कहे कि तेरे घरमें आग लग गई है, तो क्या वह अपनी जगह छोड़कर घर बचाने दौड़ पड़ेगा। उसने अपना माननेका भाव तो छोड़ दिया ही है। जो इसे प्रामाणिकताके साथ 'उत्तम नीति' मानकर चलता है वह हीरेको कौड़ियोंके दाम बेचता है। जो सत्यका अनुसरण इसलिए करता है कि उससे उसे व्यापारमें लाभ होगा, तो सत्यका ऐसा आचरण उसके लिए बन्धनकारक होगा। किन्तु यदि वह मोक्ष-बुद्धिसे सत्यका पालन करे तो वही आचरण तारक बनेगा। इस तरह काम करनेवाला योगी है, क्योंकि कार्यमें कुशलता योग है। जो व्यक्ति स्वार्थकी दृष्टिसे यह सब करता है, वह पत्थर है, किन्तु जो परमार्थकी दृष्टिसे करता है, वह जड़भरतकी तरह है। यद्यपि आखिरकार तो उसे ज्ञानकी प्राप्ति होनी ही है। 'जैसे चाहो, वैसे रहो,' वाली पंक्ति उसपर लागू होती है। किन्तु सतत कर्म तो उसे करते ही रहना चाहिए। वह अन्य कारणोंसे कोई अन्य कल्पना नहीं करता[१]। यह बात उसीके विषयमें कही जा सकती है जिसने अपने-आप अहंकारको धोकर स्वच्छ कर लिया है।

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥(३,२१)

श्रेष्ठ पुरुष जो-जो काम करता है, अन्य व्यक्ति भी वैसा ही करते हैं। वह जिस तरह चलता है, दूसरे भी उसी तरह चलते हैं। वह जिस गजसे नापता है, समाज भी उसीसे नापेगा। लोग तो यही देखते रहते हैं कि बड़े आदमी किस तरहका आचरण कर रहे हैं। सत्यका आचरण गांधी किस तरह करता है। कोई श्रेष्ठ पुरुष विचारमें भी जैसा आचरण करता है, उसका परिणाम भी हुए बिना नहीं रहता। जो व्यक्ति नीति समझकर सत्य बोलता है, उसका सत्य लंगड़ा है। किन्तु सत्य जिसके विचारमें है, वह मूक रहते हुए भी कार्य करता ही रहेगा। इस व्यक्तिका विचार सफल होता है। बिना सफल हुए रहता ही नहीं। जो विचार, आचार और वाणीमें एक रहता है, वह आदर्श व्यक्ति है। सब उसका अनुसरण करेंगे। इसीलिए मैंने

  1. 'अन्य कारणे अन्य कशुं कल्पे नहि' रामचंद भाई।