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'गीता-शिक्षण'

चरखेकी जो बात कही है, यदि हम उसे विचार, वाणी और कर्ममें उतारेंगे तो सब उसका अनुसरण करेंगे। मिट्टीकी पूजा करनेवालेको जब ईश्वर मिल जाता है, तो इसे क्यों नहीं मिलेगा।

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बुधवार, २१ अप्रैल, १९२६

आज रामनवमी है। हम लोग आज दो घंटे 'रामायण' पढ़ते हैं और सुबह राम जन्मकी चर्चा होती है। लोग उपवास रखते हैं अथवा एक बार भोजन करते हैं, अथवा केवल फलाहार करते हैं। आज रामनवमीको इस प्रकार मनाकर 'गीता' में जो कुछ पढ़ा है, हम उसका पालन करेंगे। इस समय में एक धर्म-संकटमें हूँ। यद्यपि में आश्रममें हूँ, फिर भी सम्भव है कि मैं इसमें शामिल न हो सकूं। एक दूसरा धर्म मुझे पूरा करना है। पण्डित मोतीलालजीने मुझे लिखा कि अमुक सज्जनको बुलाओ और उसके साथ बातचीत करो। इसलिए मुझे आश्रम में रहते हुए भी उक्त सज्जनके साथ चर्चा करनी पड़ेगी और जिस समय आश्रममें 'रामायण' का पाठ होता रहेगा, उस समय मुझे उक्त सज्जनके भोजनकी तैयारी कराते रहना होगा। यह् आचरण उलटा है। यदि मैं इस सबमें ओतप्रोत हो गया होता, तो जैसे किसी भी परिस्थितिमें मैं चार बजेकी प्रार्थनामें शामिल हो जाता हूँ उसी तरह इस उत्सवमें भी शामिल हो जाता और तब मोतीलालजीसे कहता कि रामनवमीके कारण मैं आधा दिन ही दे सकूंगा। किन्तु अभीतक यह मेरा दृढ़ स्वभाव नहीं बना है, इसलिए वैसा नहीं कह सकता। कहूँ तो वह कृत्रिम होगा। किन्तु मुझे चाहिए कि आश्रमको तो इसी दिशा में बढ़ने दूं। जबतक हम संस्कारपूर्ण नहीं बने हैं, तबतक हम आधे पशु हैं, और आधे मनुष्य। पूरे मनुष्य बन जायें तो हमारा जीवन केवल कल्याणमय हो जाये। मेरा मन तो होता है कि मैं मोटे तरीकेपर हरएक बातमें आदर्श उपस्थित कर सकूं, किन्तु जबतक विचार, वाणी और आचार इन तीनोंमें व्यक्ति एक नहीं हो जाता, तबतक ऐसा नहीं होता। इसलिए तुम तो कार्यक्रमको जैसा चल रहा है, वैसा ही चलाना। उपवास करना और 'रामायण' का पाठ करना। मेरी अपूर्णताको निभा लेना और मेरी मृत्युके उपरान्त मेरे इस आचरणका अनुसरण न करना। मेरा आज दृढ़ न रहना मेरे स्वभाव के विरुद्ध है। किन्तु में जैसा हूँ, वैसा ही अपनेको प्रकट करना मेरा धर्म है, मेरी विनय है।

राम जन्मके विषय में अभी समय लेनेकी इच्छा नहीं है। छुट्टियाँ समाप्त होते ही तुरन्त 'रामायण' शुरू होगी, उस समय इस विषयमें कहूँगा।

अभी तो इतना ही कहता हूँ कि राम-नामकी महिमाका प्रसार हमारा अभीष्ट होना चाहिए। भजनके बाद राम धुन होती है। यह कौन-सा राम है? तुलसीदासका राम, वाल्मीकिका राम अथवा आज जिसकी जन्म तिथि है, वह राम। ये सारे राम एक हैं, अथवा अलग-अलग। यदि विचार करें, तो ये सब बातें समझ में आ सकती हैं। कुछ बातें मुझे छोड़नी पड़ेंगी। अपनी भावनाके अनुसार ही मुझे चलना होगा।