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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आज तो सब इस भावनासे चिन्तन करें कि राम-नाम हमें तार सकेगा। मैं आज भी परेशान हो जाता हूँ। जब मैं दूसरे व्यक्तियोंकी तरह अपने कामको लेकर लौकिक विचारोंमें फँस जाता हूँ, तब राम-नाम ही लेता हूँ। जब सोना चाहता हूँ और 'गीता' के विचार तथा उसके श्लोकोंका अर्थ मनमें आता है तो उस समय भी अनेक बार राम-नाम लेकर नींद प्राप्त करता हूँ। क्योंकि मैं मानता हूँ कि उस समय सो जाना मेरा कर्त्तव्य है। सारे जगतमें राम-नामको व्याप्त कर देना हो, तो यह 'रा' अथवा 'म' के उच्चारणसे सम्भव नहीं होगा; ईश्वरके स्मरणसे होगा। मनमें तरह-तरह के विकार उत्पन्न होते हों, क्रोध आता हो, तो राम-नाम जपना चाहिए। राम-नाम लेकर सारे देशको धोखा देनेकी इच्छा हो तो वह तो एक अधम बात हुई। हमारे लिए राम-नाम एक नौका है और वह हमें पार लगानेवाली है। इसलिए इसे योग्य स्थान देना चाहिए। उसे सुगन्धसे भर रखना चाहिए। मुझे 'कुरान' की एक प्रति मिली। हाजी हबीबने कहा: इसे तो मेरे घर ही रखा जा सकता है, दूसरे किसी घरमें नहीं। क्योंकि हम इसे सारी पुस्तकोंके ऊपर रखते हैं, पवित्र होकर ही इसे छूते हैं। आपसे यह नहीं होगा। व्यक्ति इस प्रकार अपनी वस्तुको सुवासित बना देता है। किन्तु 'कुरान शरीफ' को पाकसे-पाक स्थानमें रखकर भी अपने मनको नापाक स्थान में रखनेवालेसे तो ईश्वर नाराज ही होगा।

इस तरह राम-नामका व्यापक अर्थ लेना है। जिस वस्तुपर हमारा मन स्थिर हो गया है, उसमें से अधिकसे-अधिक जितना लिया जा सकता है, उतना ले लेना चाहिए।

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गुरुवार, २२ अप्रैल, १९२६

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।

इस श्लोक परसे यह समझ लेना चाहिए कि यदि छोटे आदमी बड़ोंको देखकर अनुचित आचरण करें तो इसमें अपराध बड़ोंका ही है।

न मे पार्थास्ति कर्त्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥(३,२२)

हे पार्थ, मुझे तो तीनों लोकोंमें कुछ करना शेष नहीं है। ऐसा कुछ नहीं है, जो मुझे मिल न गया हो। मेरे लिए प्राप्त करने योग्य भी कुछ नहीं है; किन्तु में कर्म फिर भी करता रहता हूँ। जिसका पेट भरा हो, अथवा जिसने उपवास किया हो, वह भोजन किसके लिए बनायेगा? दूसरोंके लिए। श्रीकृष्णके लिए सारा जगत अतिथि रूप है, सारे प्राणियोंके ऊपर उनकी प्रीति है, (होनी भी चाहिए क्योंकि यह सब उन्हींकी कृतियाँ हैं) कृष्ण कहते हैं: में ठहरा पुरुषोत्तम। मुझे तो ठीक आदर्श उपस्थित किये बिना छुटकारा नहीं है। यदि मैं ऐसा न करूँ तो प्रलय हो जाये।