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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सिक स्थिति भी होगी। इच्छाहीन स्थिति अथवा निराश स्थितिका आध्यात्मिक और भौतिक अर्थ समझना चाहिए। व्यावहारिक और पारमार्थिक अर्थ समझना चाहिए। आध्यात्मिक और पारमार्थिक अर्थमें आशा होती ही नहीं है। जिसे कोई खराब काम करना ही नहीं, उसके लिए क्या अच्छा और क्या खराब? दोषका सर्वथा नाश हो जानेपर ही अच्छा करनेकी शक्ति आती है, ऐसा नहीं कह सकते। यह शक्ति तो एक काल्पनिक शक्ति है। हमें यदि तलवारका उपयोग ही नहीं करना है, तो फिर हिंसा-अहिंसाका क्या सवाल है। यह एक वैज्ञानिक बात हुई, यह कविता नहीं है, बल्कि आत्मापर लागू होनेवाला एक सिद्धान्त ही प्रस्तुत कर दिया गया है। इस प्रकारकी मनःस्थिति प्राप्त कर लेनेके बाद अर्थात् विगतज्वर होकर लड़। महाभारत' में इस तरहकी जड़ता सिखानेवाली उक्तियाँ जगह-जगह मिलती हैं। लोहेका भीम धृतराष्ट्रके सामने रखो, ऐसा किसलिए कहा? सबको निमित्त बनानेके बाद कृष्णने लोहेका भीम सामने उपस्थित करवा दिया, इसका क्या अर्थ है? विगत ज्वर अर्थात् किसी भी प्रकारका क्रोध अथवा मोह रखे बिना युद्ध कर। साँप, पिस्सू अथवा खटमलको मैं खिन्न होकर ही मारता हूँ।

'युद्धस्व' पर कल अधिक विचार करेंगे।

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बुधवार, २८ अप्रैल, १९२६

विगतज्वर होकर युद्ध कर, ऐसा अर्जुनसे कहा। युद्ध कर, अर्थात् तू जिसे कर्त्तव्य मानता है, वह कर। सभी अवसरोंपर यह बात समझ में नहीं आती कि इस समय कर्त्तव्य क्या है। यदि सभी यह समझ जायें कि अमुक काम करना कर्त्तव्य है तो स्पष्ट हो जाता है कि सबका एक ही कर्त्तव्य है। किन्तु ऐसा नहीं हो पाता, हमें सदा अपने कर्त्तव्यकी छानबीन करनी पड़ती है। हमें कई तरहके साधनों का उपयोग करके अपना कर्त्तव्य निश्चित करना पड़ता है। इसीलिए कृष्ण कहते हैं कि विगत- ज्वर होकर कर्त्तव्य कर। मनुष्य जब अपनी जल्दबाजी और चिन्ता आदिको निःशेष वह तभी सम्पन्न कर सकता है। जिस मनुष्यकी वाक्यशक्ति वह कुशलतापूर्वक नहीं बोल सकेगा। वैसे सच तो यह है कि एक इटैलियनने कहा है कि हम सभी पागल हैं। यदि हम इस बकवासमें भी हमें इसलिए जब हमें पसन्द कर देता है, कर्त्तव्य कमजोर हो गई हो, हम सभी अंकुशल हैं, पागल न होते तो तरह-तरह की बकवास न करते रहते। चुनाव करना पड़ता है कि हम क्या कहें और क्या न कहें। करना ही पड़ता है तो उस चुने हुए कर्त्तव्यको विगतज्वर होकर अर्थात् राग-द्वेष छोड़कर करें। जो माँ अपने और दूसरेके बच्चेके बीचमें भेद नहीं करती, उसके निर्णयके विषय में कोई भयकी बात नहीं होती। राग-द्वेषका अभाव कर्त्तव्यकी पहचानका पहला सोपान है। इस विचार सरणीके छोरतक जायें तो हम देखेंगे कि राग-द्वेष-हीन व्यक्ति अहिंसक व्यक्ति है। उदाहरणके लिए हरिश्चन्द्रने तारामतीको मंगल-सूत्र के कारण पहचान लिया। अपने प्रियसे-प्रिय व्यक्तिका जिसे वह पूजतातक था, सिर