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'गीता-शिक्षण'

मनुष्य-मात्रका ईश्वरको पहचानना है। पशुका स्वभाव खाना-पीना, सोना इत्यादि है। वह प्रातः कालमें रामका ध्यान नहीं कर पाता। किन्तु मनुष्य-जातिका स्वभाव तो इससे भिन्न ही होना चाहिए। रामदास स्वामीने[१] कहा है कि सदाचार, श्रेष्ठ सदाचारका पंथ कदापि न छोड़ा जाये। यहाँ जो बात कही गई है वह एक अलग बात है; 'प्रकृति यान्ति भूतानि'। जो व्यक्ति पशु जैसा है, दूसरा आदमी कबतक उसको सुधारनेका प्रयत्न करता रह सकता है। कबतक उसपर दबाव डाला जा सकता है? मनुष्य केवल पशुवत् आचरण करे, तो हम क्या कर सकेंगे। मैं इस लड़कीको दो चप्पलें जमा सकता था किन्तु इससे तो वह और भी हठीली हो जाती। लेकिन किसी दिन यदि इसके मनमें राम आ जाये तो यह इस प्रसंगको याद करके सुधर सकती है। इस श्लोक में यह नहीं कहा गया है कि मनुष्य प्रयत्न न करे। सुधारनेका प्रयत्न तो करना ही चाहिए। किन्तु यदि कोई व्यक्ति ऐसा कहे कि हम पशु ही बने रहेंगे और हममें कोई सुधार नहीं होगा, तो संघर्ष चलता रहेगा। उदाहरण के लिए शिक्षक और बालकको लें। यदि विद्यार्थी स्वयं शिक्षकसे कहे कि जब मुझसे कोई गलती हो तो आप मेरे कान पकड़ें और पीटें, तो शिक्षक इस वचनके अनुसार उसका कान पकड़ सकता है।

कल अहिंसा के तीन उदाहरण लिये गये थे। यह एक और प्रकारका उदाहरण हुआ। ऐसे विद्यार्थी स्वयं और दूसरोंके द्वारा अपने ऊपर अंकुश रखते हैं। हमारे मन में अनेक विकार उत्पन्न होते रह सकते हैं; किन्तु हम यह इच्छा नहीं करते कि वे उत्पन्न होते रहें। जिस तरह हमारे भीतर रोग उत्पन्न हो जाता है तो हम उसे बनाये रखनेकी इच्छा नहीं करते। हमारा स्वभाव तो चंगे हो जानेका है। ऐसी अवस्था में वैद्य कल्याणके विचारसे उसपर चाहे जितने बन्धन क्यों न लगाये, रोगी उसका उपकार ही मानता है। किन्तु यदि मनुष्य स्वयं सुधरनेकी इच्छा ही न करे तो राजा उसे दण्ड देकर भी क्या कर सकता है? जो व्यक्ति अपनी मनुष्यताका नाश करके पशु बन गया है, उसके भीतर राम बसते हों तो भी कोई दूसरा व्यक्ति उसे नहीं सुधार सकता। हमें आशा तो नहीं छोड़नी चाहिए, फिर भी जिस मनुष्यने अपने स्वभावको दुष्टतामें ही दृढ़ कर लिया है, निग्रहका उसके लिए क्या उपयोग है। उसकी निष्कृति तो मरकर ही होती है। रावण मन्दोदरीसे कहता है कि मेरी रामके साथ शत्रुता है; मुझे मरना ही है। अर्थात् वह जो मरा सो अपने पापसे ही।

निग्रहका अर्थ है प्रयत्न अथवा दबाव। मित्र, स्त्री, बहन, शिष्य सुधरनेकी इच्छा करे, तभीतक निग्रह किया जाना चाहिए। जब वह विद्रोही हो जाये तो क्या निग्रह किया जा सकता है। नंगेका बादशाह भी क्या बिगाड़ सकता है? उसके लिए दूसरेके प्रयत्न निरर्थक हैं।

जिनके मनमें प्रेम शेष है उन्हींके प्रति सत्याग्रह किया जा सकता है। जहां प्रेम बाकी है, वहीं दबावका उपयोग हो सकता है। किन्तु जहाँ यह नहीं होता,

  1. सत्रहवीं शताब्दीके महाराष्ट्रके सन्त।