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'गीता-शिक्षण'

मोतीके लिए जीवनकी आशा छोड़कर सागरमें कूद पड़ते हैं।[१]" इस पंक्ति में प्रयत्न-की सीमा सूचित की गई है।

श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।(३,३५)

यदि हमारा धर्मं विगुण हो और दूसरेका धर्म उत्तम हो, तो भी स्वधर्मं ही अच्छा है। स्वधर्ममें मृत्यु श्रेयस्कर है। दूसरेका धर्म भयानक है। अपने धर्मके विषयमें सम्पूर्ण पुरुषार्थ किया जाये। दूसरेके धर्ममें पुरुषार्थ बिलकुल ही न किया जाये। बम्बई-के महलमें जाकर सुख प्राप्त करनेका प्रयत्न भयानक है, जब कि यहाँ रहकर सन्तोष मानना सुखकी निशानी है।

[ ५८ ]

शनिवार, १ मई, १९२६

सच बोलना एक सामान्य धर्म है। कुछ विशेष धर्म भी होते हैं। उन्हें हम अपना-अपना धर्म कह सकते हैं। मान लो किसीका धर्म पाखाना साफ करना है। जो हिसाब-किताब रखता है, उसके कामके प्रति इसे दोष-भावना नहीं रखनी चाहिए। पाखाने को अपने बरतनोंकी तरह स्वच्छ करनेवाला व्यक्ति अपने धर्मको उत्तम रीति से निवाहता है। अर्जुन जंगलमें बैठकर माला जपनेका विचार करे तो वह उसके लिए योग्य नहीं है। उसका धर्म तो शत्रुओंको मारना ही था। यह किसी ऋषिके लिए धर्म है किन्तु उसके लिए तो अधर्म ही है। हमारा धर्म हलका माना जाये तो भी वही उत्तम है। [कृष्ण कहते हैं; ] तू इस तरह अहंकारयुक्त बात क्यों कहता है। नो भार जेम श्वानताणे"। यदि तेरे धर्म-पालनमें से किसी पापकी निष्पत्ति हो, तो उसे मैं अपने ऊपर ले लूंगा। भरतने रामचन्द्र के बनवासकी अवधि में राज्य नहीं किया, किन्तु निमित्त तो वे बने। राज्य रामचन्द्रजीकी पादुकाने किया। सारा राजकाज राम-चन्द्रजीकी ओरसे भरतजीने चलाया। वे एक क्षणके लिए भी रामकी याद नहीं भूलते थे। इसी तरह कृष्ण अर्जुनसे कहते हैं कि तुझे राजपाट मिले, तो भी ऐसा किस लिए मानता है कि वह तुझे मिलेगा। यदि तू अपने कर्मका कोई भी फल प्राप्त न करना चाहे, तब तो युद्ध तेरा धर्म ही है। तुझे तो केवल निमित्त बनकर रहना है।

अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥(३,३६)

अनिच्छा रहते हुए भी हे कृष्ण! किसकी प्रेरणासे मनुष्य पाप करता है? लगता है, मानो उसे पाप करनेपर विवश किया जाता है। पापके लिए प्रेरित कौन करता है, इसका जो जवाब कृष्ण देते हैं, उसका विचार कल करेंगे।

३२-१२

  1. गुजराती कवि प्रीतम (१७२०-१७९८) की पंक्ति । “सिन्धु मध्ये मोतो लेवा मांही पडया मरजीवा जोने"।