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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जगतको सर्वांशमें देखें तो ज्ञात होगा कि साम्राज्य दुष्टताका नहीं है, केवल साधुताका है। दुष्टता तो करोड़ों दुष्ट हों, तब चल सकती है; किन्तु यदि साधुता एक भी व्यक्ति में मूर्तिमन्त हो, तो वह साम्राज्यका उपभोग कर सकता है। अहिंसाका इतना प्रभाव कहा गया है कि हिंसा उसके सामने आते ही शान्त पड़ जाती है। अहिंसाके आगे पशु भी अपनी पशुता छोड़ देता है। जगत-भरके लिए एक ही साधु पुरुष पर्याप्त होता है। ऐसा साधु पुरुष लोगोंके मनपर राज्य करता है, हम नहीं करते। क्योंकि हम तो जैसे-तैसे अपनी गाड़ी खींच रहे हैं। मैंने जिस तरहके साधु पुरुषका उल्लेख किया, वह लिख-भर दे तो सब कुछ वैसा ही हो जाये। ऐसा होता है साधुताका साम्राज्य। जहाँ दुष्टता होती है, वहाँ सब अस्त-व्यस्त हो जाता है। किन्तु साधुता हो तो तन्त्र सुव्यवस्थित चलता है और प्रजा सुखी रहती है। यह सुख खाने-पीनेका सुख नहीं, बल्कि लोगोंके सदाचारी और सन्तोषी बननेका सुख है। नहीं तो व्यक्ति करोड़ोंका मालिक होते हुए भी विकल घूमता रहता है। इसे सुखकी निशानी नहीं कह सकते।

इसलिए इस श्लोकका अर्थ यह हुआ कि जब अधर्म व्यापक हो जाता है, तब कुछ लोग तपश्चर्या करते हैं और तपश्चर्याके अन्तमें साधुताका प्रादुर्भाव होता है। दुष्टों का सिर भी साधुताके सामने झुक जाता है। पशुताके ऊपर भी उसका हुक्म चलता है। यह एक ऐसी बात है, जो आज भी हो सकती है। जो व्यक्ति निर्वैर हो गया, सत्यकी मूर्ति बन गया, सब उसके सामने हाथ बाँधकर आ खड़े होते हैं। उसे स्वयं कुछ नहीं कहना पड़ता। उसके इच्छा करते ही सब कुछ हो जाता है।

ईश्वरका न जन्म न मरण। अवतार भी नहीं है। जो माया दिखलाई पड़ती है, वह माया ही है। यहाँ इसी मायाका वर्णन किया गया है, और मनुष्यको आश्वासन दिया गया है कि दुष्टता क्षणिक है। साबुता शाश्वत है। इसलिए हमें चाहिए कि हम साधुताका विकास करें और दुष्टताका विकास करनेकी थोड़ी भी कोशिश न करें।

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शनिवार, ८ मई, १९२६

भगवान मनुष्यके हृदयमें प्रेरणा उत्पन्न करके उसके द्वारा दुष्टताका संहार और साधुताकी स्थापना करता है। हिसाब लगायें तो दुनियामें साधुता ही हासिल बचे। यदि ऐसा न हो, तो जगतका नाश ही हो जाये। जिस कुलमें दुष्टता बढ़ जाती है, उसका नाश हो जाता यह हम देखते हैं। जिस तरह यादव-कुलका नाश गया। उस कुलमें दुष्टता बढ़ गई थी। उसमें कृष्णका जन्म हुआ था; फिर भी यादवगण व्यभिचारी और मद्यपायी बन गये। अन्तमें वे आपसमें लड़ मरे। जिसे कोई नहीं मार सकता, ऐसे बली और अकड़नेवाले व्यक्तिको भी कोई-न-कोई नीचा दिखानेवाला मिल जाता है। यादव-कुलमें एक भी व्यक्ति नहीं बचा। जब दुनियामें दुष्टता इतनी बढ़ जाये कि साधुता और दुष्टताके जोड़ने घटानेसे दुष्टताका अंक अधिक निकले और दुष्टता ही शेष रह जाये, तब विनाश ही है। शरीरमें जबतक पोषक शक्ति बच रहती