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'गीता-शिक्षण'

है, तबतक शरीर टिकता है। इसी तरह यदि जगतमें साधुता कम पड़ जाये और दुष्टता उसके मानसे अधिक हो जाये तो जगतका विनाश ही हो जायेगा। इसलिए भगवानने कहा कि में समय-समयपर प्रकट होता हूँ।

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥(४,९)

वह ज्ञानी इस ईश्वरीय जन्म और कर्मको तात्विक दृष्टिसे समझ लेता है। देह छोड़नेके बाद उसे फिर जन्म नहीं लेना पड़ता; वह मुझे पा जाता है।

क्यों नहीं पायेगा? वह जान चुका है कि यह शरीर नाशवन्त है; फिर इसकी चिन्ता क्या करें। प्रयत्न अमर आत्माके लिए क्यों न करें? आत्मा इस शरीर रूपी पिंजरे में पड़ा हुआ है, अथवा शरीर-रूपी कैदखानेमें अपराधीकी तरह कैद है। हमने गुनाह किये इसलिए शरीर रूपी कैदमें पड़े हैं। तुलसीदास और सूरदासने गाया है कि हमारे जैसा पतित कोई नहीं है। हम जन्मसे ही पतित हैं; इसीलिए जन्म लेते हैं। इस शरीर रूपी पिंजरेमें बन्द हैं, इसलिए उड़ जानेका विचार करके भी उड़ नहीं पाते। किन्तु यदि ईश्वरके इस दिव्य जन्म और कर्मका तात्विक विचार करें, तो उड़ सकते हैं। यदि हम अपने सिंह-जैसे आत्माको पहचान लें तो सिंह जैसे ही हो जायें। यह कैसे सम्भव हो सकता है? यह बताते हुए कहते हैं कि

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः।(४,१०)

ईश्वरके दिव्य जन्म - कर्मको जाननेवालेका राग, भय और क्रोध चला जाता है, वह मुझमें ही लीन रहता है। (उसका हृदय चीरकर देखो, तो भीतर राम ही निकलेंगे ।) वह मुझपर ही निर्भर रहता है। वह ज्ञान और तपश्चर्यासे पवित्र हो चुका है और मेरे जैसा ही हो गया है। ऐसा व्यक्ति मुझे प्राप्त करता है। किसीको दिव्य जन्म-कर्म- का ज्ञान हो गया है या नहीं, सो जाननेका यह लक्षण बताया।

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रविवार, ९ मई, १९२६

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥(४,११)

लोग जिस तरह मुझे भजते हैं, उसी तरह में उन्हें भजता हूँ। बुद्धिमान् मनुष्य सभी प्रकार मेरे मार्गका अनुसरण करते हैं।

इसका यह अर्थ हुआ कि जो जैसा करता है, उसे वैसा मिलता है। जैसी भक्ति वैसा फल। सकाम भक्ति हो, अर्थात् अमुक वस्तु मिले ऐसी इच्छासे भक्ति की गई हो, तो वैसी भक्तिसे जो मिल सकता है वह मिल जायेगा। ऐसा नहीं कि जो इच्छा की हो, वह मिल जायेगा; बल्कि अर्थ यह है कि जो मिलने योग्य होगा, वह मिलेगा। हम इच्छा करें कि हम ईश्वर हो जायें, तो हमें ईश्वरत्व नहीं मिल