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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकता। फिर भी जो कुछ करेंगे, उसके अनुसार मिलेगा। योग्य वस्तु ही मिलेगी। चार मील चलें, तो वहाँ जो कुछ होगा, वह मिलेगा। यदि चिरायता खाकर कब्ज दूर करना चाहें, तो वह नहीं होगा। उससे तो छोटा-मोटा बुखार हट सकता है। अरण्डीका तेल पियें और चाहें कि दस्त न लगें, तो इस इच्छाका पूरा होना सम्भव नहीं है।

‘ये यथामाम् प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ का यह अर्थ हुआ और इसके बाद कहा ‘मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थं सर्वशः।।’

सभी व्यक्ति मेरे पथका अनुसरण करते हैं। इस श्लोकसे सम्बन्धित एक बात याद आती है। जब तिलक महाराज जीवित थे, तब उन्होंने हिंसा-अहिंसाकी चर्चा करते हुए इसका हवाला दिया। मैंने कहा था कि यदि कोई व्यक्ति हमें थप्पड़ मारे, तो चाहिए कि हम उसे सहन कर लें। उत्तरमें उन्होंने इस श्लोकको उद्धृत करते हुए कहा कि 'गीता' भी इस प्रकार 'जैसेके प्रति तैसा' करनेको कहती है। वह कहती है कोई व्यक्ति जिस तरह हमारे साथ बर्ताव करे, हम भी उसके साथ वैसा ही बर्ताव करें। उस समय मैंने उन्हें जो उत्तर दिया, में उसपर दृढ़ हूँ। मैंने कहा कि इस श्लोकको इस तरह लागू नहीं किया जा सकता। व्यक्ति जिस तरहका आचरण हमारे प्रति करता हम उसके प्रति वैसा आचरण नहीं कर सकते। यदि कोई व्यक्ति हमारे प्रति अयोग्य व्यवहार करता है तो हम भी उसके प्रति अयोग्य नहीं बन सकते। यह श्लोक केवल ईश्वरका नियम प्रस्तुत करता है। कृष्ण भगवानने कहा है कि जिस तरह मेरा भजन किया जायेगा, उसी तरह मैं भी भजूंगा। इसका अर्थ यह हुआ कि जैसी करनी, वैसी भरनी। यदि व्यक्ति खराब काम करके अच्छे- की आशा रखे, तो वह सम्भव नहीं है। एकके बदले दो थप्पड़ मारनेका अधिकार मनुष्यको नहीं है। किन्तु संसारमें तो उलटी ही बात प्रचलित है। जैसे-जैसे सभ्यता बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे बात अधिक उलटी होती जा रही है। जंगली लोग एकके बदले दो मार सकते हैं और जो उन्हें मारता है उससे बदला ले समाजोंमें बाप-बेटे के बीच भी बहुत मधुर सम्बन्ध नहीं होते। सभ्य होता है, वह सहन कर लेता है और इस प्रकार पुत्र भी नम्र बन जाता है। यदि लड़का अच्छा हो तो माँ-बापको सहन कर लेता है। यह अच्छी बात है। हम इसे पसन्द करते हैं। फिर इसीके पूर्ववर्ती श्लोकमें हमने देखा है कि प्रभुको कौन लोग प्राप्त करते हैं। कहा गया है 'वीतरागभयक्रोधाः'। जिन्हें राग, भय और क्रोध नहीं है, ऐसे शान्त व्यक्ति प्रभुको पाते हैं। यह श्लोक उस श्लोकके विरुद्ध नहीं है, बल्कि उसकी पूर्ति में है। इसमें कहा गया है कि यदि तुम रागयुक्त और क्रोधयुक्त बनोगे तो मुझे प्राप्त नहीं करोगे। क्रोधी बनोगे तो तुम्हें उसका बदला अवश्य मिलेगा। अर्थात् हमें क्रोध इत्यादि नहीं करना है; बल्कि हमें तो राग, भय और क्रोध रहित बनना है।

इस श्लोककी दूसरी पंक्ति में कहा कि आदमियोंको मेरे नियमके अनुसार चलना पड़ता है। जिस नियम-कर्मके जिस नियमका अवलम्बन करके जगत चलता है उसके अनुसार चलना नियमानुसार चलता है। हम कह सकते हैं कि नियम ही ईश्वर है। Gandhi Heritage Portal