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'गीता-शिक्षण'

ज्ञान देंगे; इसका यह अर्थ नहीं है कि वे बुद्धिसे तुझे यह समझा देंगे; बल्कि अर्थ यह है कि वे तेरी श्रद्धा जागृत कर देंगे। तू इस श्रद्धाके सहारे देख सकेगा कि मैंने अपनेको दूसरोंसे अलग तो अपनी बुद्धिके कारण कर लिया है। वास्तवमें तो सब कुछ एक ही है। ईश्वर, में और अन्य वस्तुएँ – तीनों ही एकमें समाहित हैं। इस तरह ईश्वर भी मिट गया और बच गया केवल 'नेति नेति'। जो ऐसा समझता है, कह सकते हैं कि उसका सारा मोह नष्ट हो गया।

अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि॥(४,३६)

तू सारे पापियोंका शिरोमणि हो, तो भी ज्ञानरूपी इस नौकासे तू जल्दी ही सारे मोहोंके पार हो जायेगा। रायचन्दभाईने कहा है 'मोह स्वयंभू-रमण समुद्र तरीकरि' अर्थात् मोहके स्वयंभू-रमण[१] समुद्रको पार कर जायेगा।

हंडीमें भात है, इस बातकी जानकारीसे भूख नहीं मिटती। जब अन्न पेटमें जायेगा तभी भूख मिटेगी। किन्तु कहा जा सकता है कि वास्तवमें पेटमें पहुँचकर उसके पचने और खून बन जानेके बाद ही भूख शान्त होती है।

यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा।।(४,३७)

जैसे अग्नि सुलग जानेपर ईंधनको भस्म कर देती है, उसी प्रकार ज्ञान रूपी अग्नि सभी कर्मोंको जला डालती है।

पहले ज्ञानको नौकाकी उपमा दी और बादमें अग्निकी। वह कर्मके बन्धनको जला डालती है।

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मंगलवार, १५ जून, १९२६

मेरे लिए तो 'गीता' नौका ही है। इसलिए नहीं कि उसमें विद्वत्ताकी बातें भरी हुई हैं, बल्कि इसलिए कि वह मुझे अच्छी लगी; मेरे बुढ़ापेमें वह मुझे रुची; या कहो कि उसके कुछ श्लोकोंने मुझे बड़ा सहारा दिया। आप इनमें से कुछ भी कह सकते हैं।

मनुष्य खाकर ही नहीं जीता; पशुको जीने के लिए इतना पर्याप्त है। अन्ना किंग्सफोर्ड कहा करती थी कि [ कई बार ] लोग सांपों और शेरों-जैसे लगते हैं! पशु भी हमारे सगे-सहोदरे हैं। वे और हम एक ही जगह से आये हैं। किन्तु वे खाकर जीते हैं और मनुष्य यज्ञ करके जीता है। कुछन-कुछ यज्ञ तो मनुष्य कर ही लेता है। चरखा भी यज्ञ है। प्रार्थना भी हमारा यज्ञ है; यह हमारा आध्यात्मिक शौच है। हम जबतक प्रार्थना न कर लें तबतक हमें व्याकुलताका अनुभव होना चाहिए। जो इस दृष्टिसे 'गीताजी' सुनने आते हैं, वास्तवमें वे ही आते हैं। दूसरोंका आना, आना नहीं है। यदि 'गीता' के शिक्षण में हमारी यह दृष्टि न हो, तब तो हम विनोबासे भी कोई

  1. जैन-साहित्य में सर्वाति दूर समुद्रका नाम; ऐसी मान्यता है कि अधिक विस्तृत होनेके कारण उसे कोई पार नहीं कर सकता।