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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

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मंगलवार, २२ जून, १९२६

कर्मका अर्थ है, जो प्राप्त हो जाये वह कर्म। हम जिसकी इच्छा करें वह कर्म नहीं। ध्यान रखना चाहिए कि संकल्प-पूर्वक 'प्राणिनाम् आर्तिनाशनं' के[१] प्रयत्नमें लीन होना भी उचित नहीं है। जब व्यक्तिका अहंकार नष्ट हो गया और वह पिघलकर ईश्वरमें मिल गया तब उसे इच्छा करनेकी भी आवश्यकता नहीं रही। वह तो उतना ही कर्म करेगा, जो उसके सामने प्रस्तुत हो जायेगा। यदि उसने कोई इच्छा न की हो, तो शुद्धसे-शुद्ध कर्म ही उसके सामने प्रस्तुत होंगे और उसकी वृत्ति ऐसी रहेगी कि वह जो कुछ कर रहा है, सो ईश्वरके द्वारा किया जा रहा है। हरिश्चन्द्र अपनी पत्नीके गलेपर तलवार चलानेके लिए तैयार हो जाता है। जिसने तलवार उठाई है, क्या वह हरिश्चन्द्र है? वह तो ईश्वर है और हरिश्चन्द्र केवल आज्ञाका पालन कर रहा है। वह बेचारा तो दास बन चुका था। ईश्वरका दास बन जानेके बाद हमारे लिए यह सोच-विचार करने की कोई बात नहीं बचती कि अमुक काम करें अथवा न करें। जो काम हमारे ऊपर आ पड़े, उसे करें और उसका बोझ स्वयं ईश्वरपर छोड़ दें।

संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म न चिरेणाधिगच्छति॥(५,६)

जिसने सब कुछ कृष्णार्पण नहीं कर दिया है, उसके लिए संन्यास साधना एक बहुत कठिन बात है। संन्यास कर्मयोगके बिना सिद्ध ही नहीं हो सकता। इसलिए वास्तवमें कर्मयोग ही संन्यास है। जो व्यक्ति राग-द्वेष इत्यादिसे रहित हो गया, जिसका अहंभाव निःशेष हो गया, वह संन्यासी बन गया।

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।।(५,७)

योगयुक्त व्यक्तिको ब्रह्म-प्राप्तिमें देर नहीं लगती। जिसने कर्मयोग साध लिया है वह योगयुक्त है। जो मनुष्य पवित्र हो गया है, जिसके मलमात्र जल गये हैं, जली हुई रस्सीकी तरह [ शक्तिहीन ] हो गये हैं, वह सभी कर्म यन्त्रवत् करने लगता है। यन्त्रवत्का यह अर्थ नहीं है कि उसका उस विषयमें अवधान नहीं रहा बल्कि अर्थ यह है कि उस कार्यके प्रति उसके मनमें अहंभाव नहीं बचा। जिस तरह यन्त्रसे सीधा धागा निकलता है, उसी तरह कामका धागा भी उसके हाथसे सीधा निकलेगा। मूढ़ मानस भी यन्त्रवत् काम करता है। ईश्वरका दास भी उसी तरह काम करता है। किन्तु यह उसे स्वार्थ अथवा आजीविकाके विचारसे नहीं करता, इसलिए वह शोभायुक्त होता है। साधारण मजदूरीमें शोभा नहीं है। उसका कारण यह है कि वह अपनी रोटी कमाने के लिए ही की जा रही है। ईश्वरके दासके कामकी देखरेख के लिए

  1. पूरा श्लोक इस प्रकार है:—नत्वहं कामये राज्यम् न स्वर्गे नापुनर्भवम्।
    कामये दुःख-तप्तानाम् प्राणिनाम् आर्तिनाशनम्॥