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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अथवा नहीं। यह जो 'दंशित हुआ है सो शरीर ही है और जो लाल दाग है वह भी शरीरपर ही है।' वह अपने सारे काम यन्त्रवत् करेगा, फिर भी उसका प्रत्येक काम दीप्त होगा। वह सुन्दरसे सुन्दरतर होता चला जायेगा। वह कभी किसी कामसे न थकेगा, न परेशान होगा, न घबरायेगा।

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि संगं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।(५,१०)

ऊपरके श्लोकोंका कोई गलत अर्थ न निकाल डाले, इसलिए कहा: ब्रह्ममें अपने सारे कर्मोंको अर्पित करके — आसक्ति छोड़कर जो व्यक्ति अपने सारे काम करता है, वह कभी पापमें लिप्त नहीं होता। पाप उसपर उसी प्रकार कोई भी प्रभाव नहीं छोड़ता जिस प्रकार कमलका पत्ता पानीसे अलिप्त रहता है। 'पाप' का अर्थ व्यापक है और इसके अन्तर्गत पाप और पुण्य दोनों ही आ जाते हैं। ऐसे व्यक्तिको पाप-पुण्यका फल नहीं भोगना पड़ता। यद्यपि ऐसा व्यक्ति काम करता रहता है, फिर भी कर्म उसे स्पर्श नहीं करता। अन्य पत्ते पानीसे भीग जाते हैं और सड़ जाते हैं, किन्तु कमलपत्रपर पानी ठहर ही नहीं पाता।

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये।।(५,११)

योगी-जन कर्म करते हैं, किन्तु वे करते हैं उसे केवल कायासे, मनसे, बुद्धिसे. केवल इन्द्रियोंसे ही। और ऐसा करता हुआ वह मानता है कि में यह कर्म नहीं कर रहा हूँ क्योंकि वह सारे काम निःसंग होकर आत्मशुद्धिके लिए ही करता है। आत्म- शुद्धिके लिए कर्म करनेका अर्थ है 'कर्मको ब्रह्मार्पण कर देना।

१९२१ में हमने प्रारम्भमें जो कुछ किया, आत्मशुद्धिके लिए किया, किन्तु बादमें हम इसे भूल गये और इसलिए विघ्न उपस्थित हो गया।

जो व्यक्ति आत्मशुद्धिके लिए काम करता है, वह अपने यन्त्रको तटस्थ भावसे चलाता रहता है।

युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते॥(५,१२)

योगी कर्मफलका त्याग करके 'नैष्ठिक मोक्ष' देनेवाली शान्ति प्राप्त करता है, ब्रह्मनिष्ठ व्यक्तिको प्राप्त होनेवाली शान्ति। पत्थर अथवा जड़ व्यक्ति अथवा कामी पुरुष अपने विषयमें लीन होकर जो क्षण-भरकी शान्ति भोगता है, वह शान्ति नहीं है बल्कि शान्ति तो ब्रह्मनिष्ठकी है — वही आत्मानन्द है। अयुक्त व्यक्ति कामपाशमें जकड़ा हुआ होता है। जो व्यक्ति मुग्ध होकर काम करता रहता है, वह भी आसक्त है। इसीलिए वह फलसे बँधा हुआ — आशापाश और विषयपाशसे बँधा हुआ है। यदि हम किसी सर्पको चिढ़ा दें, तो वह हमें अपनी कुण्डलीमें कसकर पीस डाल सकता है, हमारे शरीरको चूर-चूर कर दे सकता है। किन्तु मीराबाईको तो वह ऐसा