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'गीता-शिक्षण'

गढ़ा जाता है और किसी दिन वह योगीके रूपमें आ जाता है। जिस मनुष्यने योग-पर सवारी कर ली है — जिसने साम्य पा लिया है — जिसका मन स्थिर हो गया है, उस मनुष्यका साधन शम अर्थात् शान्ति है।

कल जो कुछ कहा था वही बात यहाँ भी लागू होती है। आज मुझे अपनी बात विभिन्न प्रकारोंसे समझानी पड़ती है। मैं कर्म करते-करते समझ सका हूँ कि तुम अमुक-अमुक प्रकारसे समझ सकते हो, इसलिए मुझे अपनी बात तुम्हें उन प्रकारोंसे समझानी पड़ती है। यह भी एक प्रकारका योग है। अन्तमें हमें सफलता मिलेगी। यदि तुम इशारेमें ही समझ जानेवाले बन जाओ, तो हमें शान्तिका साधन प्राप्त हो जाये। कारखाने में दिन-भर तेजीसे काम होता रहता है किन्तु अन्तमें कारखाना बन्द करनेका समय आनेपर वहाँ शान्ति विराजमान हो जाती है। कारखाने में अभीतक योगी बनानेका साधन कर्म था, अब उसका साधन शान्ति है। यह तो एक सुव्यवस्थित तन्त्रकी बात हुई। ऐसी शान्ति कब्र अथवा जड़ताकी शान्ति नहीं; प्रमाद अथवा आलस्यकी शान्ति भी नहीं; बल्कि चेतनकी शान्ति है — समुद्रकी शान्ति है।

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते।
सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते।।(६,४)

जब कोई व्यक्ति इन्द्रियों और कर्मों के प्रति आसक्त नहीं रहता बल्कि अनासक्त रहकर इन्द्रियों और कर्मोंका उपयोग करता है, तब समस्त संकल्पोंका त्याग करनेवाला वह व्यक्ति योगारूढ़ कहलाता है।

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥(६,५)

आत्माके द्वारा आत्माका उद्धार करना चाहिए। आत्माका नाश नहीं करना चाहिए। आत्मा ही आत्माका बन्धु है, मित्र है; और आत्मा ही आत्माका शत्रु है। तुम अपना मोक्ष स्वयं ही साध सकते हो। आज तो हम आत्माके शत्रु ही हैं। आत्मा स्वयंप्रकाश है इसलिए उसे अपना उद्धार स्वयं करना चाहिए। सूर्यनारायणको प्रकाश कौन देगा? प्रभातके प्रथम प्रहरमें सूर्यनारायण अपना उद्धार करते हैं, योगारूढ़ होकर आते हैं और सन्ध्याके समय शान्त हो जाते हैं। (किन्तु क्या वह सचमुच शान्त होते हैं? में, मर जानेके बाद भी शान्त थोड़े ही होनेवाला हूँ?)

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रविवार, ४ जुलाई, १९२६

लौकिक भाषाका उपयोग करते हुए हम कहते हैं कि आत्माका उद्धार परमात्मा करता है; यह इसलिए कि दूसरा उपाय नहीं है। किन्तु आत्मा अपनी शक्तिके बिना परमात्मामें लीन थोड़े ही हो सकती है? आत्मामें परमात्मा जैसे ही सब गुण हैं इसीलिए वह परमात्मामें लीन हो सकती है। जिस तरह आत्मा स्वयंप्रकाश है, इसी तरह परमात्मा भी स्वयंप्रकाश है। अपने विरोधी गुणवाली वस्तुमें कोई वस्तु