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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
[१०० ]
बुधवार, ७ जुलाई, १९२६
 

'रहसि' का अर्थ है ऐसा शान्त स्थान, जहाँ शोरशार न हो; और एकाकी- का अर्थ है अकेला । एकान्त और अकेलापन अहमदाबादके बाजारमें भी प्राप्य है ।

किन्तु फिर भी शारीरिक एकान्त भी प्राप्त करना चाहिए । श्मशानमें जाकर नाशवन्त शरीरके विषयमें विचार करते हुए एकान्तकी प्राप्ति की जा सकती है । 'यतचित्तात्मा' का अर्थ है उस स्थितिवाला व्यक्ति जिसके शरीर अथवा मनमें किसी प्रकारकी चंचलता नहीं है। आदमी एक लँगोटीसे भी काम चला सकता है और लँगोटी तो कोई उड़ता हुआ चमगादड़ भी लाकर दे सकता है। किन्तु शरीरका परिग्रह किये बिना काम कैसे चलेगा ? इसलिए शरीरको केवल सहन कर लेना चाहिए । उसकी वृद्धिकी इच्छा नहीं करनी चाहिए। यदि हम शरीरकी वृद्धिकी इच्छा करेंगे तो जन्म-मरण होता ही रहेगा। जबतक एक पगड़ी है तबतक उसे ही बाँधते रहें; और फिर नई पगड़ी न खरीदें। ऐसा ही शरीरके बारेमें समझना चाहिए: हम इस पगड़ीको बाँधे किन्तु लाचारी मानकर । इसके बाद जन्म-मरण शेष नहीं रहता। 'आत्मानं युंजीत' का अर्थ है आत्माको परमात्माके साथ जोड़कर, स्थिर करके ।

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः ।

नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ।। (६,११)

पवित्र स्थलपर,--- इसका अर्थ देश भी हो सकता है क्योंकि कल्पना ऐसी है कि भारत कर्मभूमि है, अन्य भोग-भूमियाँ हैं; किन्तु आज तो भारत भी कर्म-भूमि नहीं रही - जहाँ निरन्तर अतन्द्रित रहकर कर्म किया ही जाता हो, वह कर्म-भूमि कहलाती है। पवित्र स्थलपर स्थिर आसन रखा जाये जो बहुत ऊँचा नहीं हो बहुत नीचा भी नहीं हो, कुश और अजिनके ऊपर वस्त्र डाला जाये अजिन अर्थात् मृगचर्म यह इसलिए कहा कि उस समय हिरनका शिकार किया जाता था। योगी तो प्रयत्न- शील व्यक्ति होता है। ठंड लगकर वह अकड़ न जाये, इसलिए सुरक्षित रहनेके लिए कहा गया है। शरीरको ऐसे आसनके ऊपर रखकर स्थिर हो जाना चाहिए।

तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः

उपविश्यासने युंज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥ (६,१२)

इस तरह बैठकर एकाग्र मन करके, चित्त और इन्द्रियोंकी क्रियाओंपर काबू रखकर आत्मशुद्धिके लिए योग-साधन किया जाना चाहिए ।

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गुरुवार, ८ जुलाई, १९२६
 

कल 'यतचित्तेन्द्रियक्रिय:' का अर्थ थोड़ा उलटा हो गया है। चित्त और इन्द्रियोंकी क्रियाओंको वशमें रखकर अर्थात् चित्त और इन्द्रियोंका निरोध करके । 'योगः चित्तवृत्ति-निरोधः' -- जिस वृत्तिमें लहरें उठती रहती हैं उसे तो समुद्रकी