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'गीता-शिक्षण'

शारीरिक व्रत ले और उनके प्रति जाग्रत रहे । यही उसके लिए श्रेयस्कर होगा । यदि हम अपनी इन्द्रियोंको अपने वशमें रखना चाहें तो अवश्य ही यह सम्भव है, किन्तु सच तो यह है कि हम उन्हें वशमें नहीं रखना चाहते और बहाने खोजते रहते हैं। इसीलिए 'गीता' कहती है, खूब मत खाओ, खूब मत सोओ ।

ऊपरके ये चार श्लोक बच्चेको चलना सिखानेवाली तीन पहियेकी गाड़ीकी तरह हैं। इनमें कहा गया है कि मध्यम मार्गका अनुसरण करना चाहिए। अन्ततो- गत्वा हर व्यक्तिको 'अर्थं साध्यामि वा देहं पातयामि वा' करूंगा या मरूँगाका आचरण ही करना है। यदि लोग इतने आग्रहपूर्वक उत्तर ध्रुवकी यात्रा करते हैं तो फिर इस आत्माके उत्तर ध्रुवकी प्राप्तिके लिए देहपात कर देना कौनसी बड़ी बात है ।

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शनिवार, १० जुलाई, १९२६
 

पहले कहा गया कि आरम्भकालमें मिताहारी रहें और अन्य सब बातोंमें अति- शयताका त्याग किया जाये। यह सब सध जानेके बाद ही यह समझा जा सकता है कि अतिशयता कहाँ-कहाँ की जा सकती है। इसलिए प्रारंभमें तो धीरे-धीरे ही आगे बढ़ना चाहिए।

आगे चलकर एक समय ऐसा आ सकता है कि जो आचरण सामान्य व्यक्तिको अतिशयतापूर्ण जान पड़ता है वह साधकको वैसा न लगे । लाखों विकार पैदा होते रहते हैं और व्यक्तिको लगता है कि अब कोई उपाय नहीं बचा। ऐसे समय व्यक्ति शरीरके विरोधमें भगवानके समक्ष सत्याग्रह करने बैठ जाता है। अहिंसा-धर्मका दूसरोंके प्रति तो मनमाना पालन किया जाना चाहिए; किन्तु यदि हम अपने शरीरके प्रति भी उसका पालन करें तो नाश ही हो जायेगा । शरीरके साथ असहयोग साधा जाना चाहिए। इसलिए पहले हृदयमें स्थित पाप-वृत्तियोंके साथ असहयोग किया जाना है। शरीरसे हम कह दें कि तेरी सेवाके बदले तुझे रोज इतना ही दिया जायेगा। किन्तु तू ठीक चाकरी नहीं करेगा तो तुझे जो-कुछ आजीविकाके रूपमें दिया जाता है, वह बन्द कर दिया जायेगा। हम किराया उसी मकानका चुकाते हैं जिसमें हमारी रक्षा हो सके, जिसकी छतसे पानी न टपकता हो और जिसकी दीवारें गिर न रही हों। किन्तु अगर कोई घर भीतरसे बिलकुल पोला हो गया है तो फिर उसका क्या उपयोग ? थोड़ा-बहुत कमजोर घर तो सुधारा जा सकता है, किन्तु जिस घरकी हवा ही जहरीली हो गई हो तो उसका क्या करें ! इसलिए यदि शरीर किराया-नामाके अनुसार चलनेको तैयार न हो तो व्यक्तिको अनशन करनेका अधिकार है।

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।

युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा

जो अतिशयताका नाश कर देता है उसका क्या होता है। आराम, आहार, इत्यादिमें जो नियमित है, जो कर्मोंके प्रति युक्तचेष्टावान है, जो निद्रामें भी मध्यम- मार्गी है, ऐसे पुरुषका योग दुःखका हरण करनेवाला हो जाता है।