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'गीता-शिक्षण'

उसके बाद परमात्माके रथको खींचनेवाला घोड़ा बन गया हो, उसके दरबारमें तन्द्रारहित होकर काम करनेवालोंमें अपना नाम लिखा दिया हो तो वह व्यक्ति कभी चलायमान नहीं होगा।

जो व्यक्ति इस तरह स्थिर हो गया है, वह परमात्म-तत्त्वसे क्षण-भरके लिए भी च्युत नहीं होता। वह व्यक्ति योगी है।

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः ।

यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ।। ( ६, २२ )

इस स्थितिको प्राप्त करनेके बाद व्यक्ति स्वप्नमें भी यह नहीं मानता कि अब इससे अधिक कोई बड़ा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। स्वप्नमें भी रामनामके सिवाय उसके सामने कोई दूसरी बात नहीं आती। यह तब होता है जब व्यक्ति प्रतिक्षण निष्काम वृत्तिसे कर्मरत रहा हो । यदि हमारी रात्रि निर्दोष न बीती हो, खराब सपना आया हो, सामान्य स्वप्न भी आया हो तो समझना चाहिए कि लोभ इत्यादि बातें अभीतक शेष बच गई हैं। जिसका मन चौबीसों घंटे जागता ही रहता हो, जिसके मनको निद्रा छूती ही न हो, वह योगारूढ़ है, एकाकी है। मैंने प्रिटोरिया जेलमें एक ऐसा राक्षसी मनवाला हब्शी देखा था जिसे चाहे जितने चाबुक क्यों न मारे जायें, उसपर कोई असर ही नहीं होता था। किन्तु योगीका मन तो दैवी हो जाता है। उसकी त्वचा प्रकाशमान हो जाती है और मन अचंचल । यदि एकान्तसेवन करनेवाले व्यक्तिका मन शारीरिक दृष्टिसे अकेले रहते हुए भी चारों ओर भटकता हो तो कहना चाहिए कि वह भीड़में ही बैठा हुआ है।

तं विद्याद्दुः खसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम् ।

स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिविण्णचेतसा । (६,२३)

जिसे योग कहा गया है, वह दुःखका आत्यन्तिक वियोग है। सुख और दुःखसे परे यह परिस्थिति अवर्णनीय है। हम इसे शान्ति कहते हैं। जहां ऐसी स्थिति होती है, उसे योग कहा गया है। इस योगकी निश्चयपूर्वक साधना की जानी चाहिए। किसी प्रकारकी उद्विग्नतासे हीन मनोवृत्तिसे इसकी साधना की जानी चाहिए ।

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मंगलवार, १३ जुलाई, १९२६
 

जो बाह्य संयोगोंके ऊपर अपने सुखका आधार रखते हैं, ऐसा लगता है कि वे सचमुचमें सुखी होना ही नहीं चाहते। अन्तमें ऐसे व्यक्ति दुःखी बन जाते हैं। न सुखका अनुभव होना चाहिए, न दुःखका । हमें चाहिए कि हम सुख और दुःख दोनोंको साबरमतीमें फेंक दें। यदि हम अनुकूल वस्तुके मिलनेपर सुखी हो जायें और प्रतिकूल वस्तुके मिलनेपर दुःखी, तो ये दोनों ही स्थितियाँ खराब हैं। हमें इन दोनों परि- स्थितियों में से निकलना चाहिए। जो सुख-दुःख दोनोंका अनुभव नहीं करता वह योगी