इटलीमें एक आठ वर्षका बच्चा है। वह ऐसा सितार बजाता है मानो गर्भमें ही सीख चुका हो ।
इसी तरह यदि कोई व्यक्ति आठ वर्षकी अवस्थासे ही समदर्शी हो तो कहा जा सकता है कि यह उसके पूर्वजन्मका संस्कार है । ऐसा व्यक्ति यत्न करते हुए सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः ।
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥ (६,४४)
वह पूर्वाभ्यासके कारण सहज ही भगवानकी ओर आकर्षित हो जाता है। जो व्यक्ति योगी है और जिज्ञासु है, वह शब्दब्रह्मको उत्तीर्ण कर जाता है अर्थात् 'वेद 'के कर्मजाल अथवा कर्मकाण्डको उलांघ जाता है। हम सेवावृत्तिसे अथवा निष्काम वृत्ति- से जो कर्म करते हैं यहाँ अभिप्राय उनके उल्लंघनसे नहीं है, बल्कि अभिप्राय अनेक प्रकारके लाभ प्राप्त करनेकी इच्छासे किये जानेवाले व्यवसायोंसे, सहेतु कर्मोंसे है।
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धफिल्बिषः ।
अनेक जन्म संसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ॥ (६,४५)
प्रयत्न करते-करते वह योगी पापका नाश करके अनेक जन्मोंकी संसिद्धि पाकर मोक्ष लाभ करता है ।
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इस जन्ममें आत्मशुद्धिरूपी जो कमाई की गई होगी वह निष्फल नहीं जायेगी ।
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः ।}} कमिभ्यश्चाविको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन । (६,४६) मैंने तुझसे योगी होनेके लिए कहा; इस कारण कि जो मनुष्य तपश्चर्या करता है योगी उसकी अपेक्षा बड़ा है; और ज्ञानीसे भी योगी बड़ा है । यहाँ ज्ञानीका अर्थ केवल शास्त्र ज्ञानवाला है, अनुभव ज्ञानवाला नहीं। जो व्यक्ति कर्मकाण्डमें रचा-पचा होता है, योगी उसकी अपेक्षा भी बड़ा होता है। इसलिए तू योगी बन।
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः । (६,४७)
सब योगियोंमें उत्तमोत्तम योगी तो श्रद्धावान् ही है । जगतके इन समस्त त्रिविध तापोंको मिटानेके लिए परमात्माका स्मरण वैसा ही है जैसा चकोरके लिए चन्द्रकिरण -- इससे बढ़कर कुछ नहीं है।
पुष्करजीसे एक स्वामी आये थे। उन्होंने मुझसे कहा कि “इतनी उम्र हो जानेपर भी तुम चरखा चलाते हुए क्यों बैठे हो ।' जो व्यक्ति निर्जल प्रदेशमें निरन्तर कुदाली लेकर जमीन खोदता है, परमार्थके लिए कुआँ खनता है वह रामनाम