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'गीता-शिक्षण'

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मंगलवार, २७ जुलाई, १९२६
 

मैं सबके लिए प्रकाशित नहीं हूँ इसका अर्थ यह हुआ कि सब मुझे नहीं देख सकते। मेरे तेजसे आँखें झप जाती हैं। मेरी माया ऐसी है कि यह कहा जा सकता है कि इसी क्षण कुछ जीव उत्पन्न हो रहे हैं और कुछ मर रहे हैं; किन्तु वास्तवमें हमें समझना यह चाहिए कि जन्म-मरणका यह परिवर्तन झूठा है। नाम और रूपसे ढँके हुए इस स्वरूपको कौन समझ सकता है ? यदि ठंडे देशका कोई निवासी हमसे कहे कि हमारे देशकी नदियाँ जम जाती हैं और उनके ऊपरसे आदमी, घोड़ा-गाड़ी इत्यादि दौड़ते चले जाते हैं तो यह एक ऐसी बात है जो एकाएक हमारी समझमें नहीं आ सकती । नाम-रूपवाले पदार्थोंके पीछेकी सत्ताके बारेमें भी ऐसा ही है। फिर भी यह सच बात है। भगवान कहते हैं कि तुम जिसे सच मानते हो, वह मेरी योगमाया है। मेरा सच्चा स्वरूप तो अव्यक्त ही है।

वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन ।

भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन

हे अर्जुन, जो पहले हो गये, जो इस समय हैं और जो भविष्यमें होनेवाले हैं उन सारे जीवोंको मैं जानता हूँ, किन्तु मुझे कोई नहीं जानता।

इच्छाद्वेष समुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।

सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परंतप ।। ( ७, २७)

इस संसारमें इच्छा और द्वेषसे उत्पन्न होनेवाले द्वन्द्वरूपी मोहसे सभी प्राणी संमोहको प्राप्त हो रहे हैं ।

येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।

ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः

जिन पुण्यशाली लोगोंके पापोंका अन्त हो चुका है, वे महान् व्रतधारी व्यक्ति द्वन्द्वके मोहसे मुक्त होकर मुझे भजते हैं ।

जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।

ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ।। (७,२९)

जो जरा और मरणसे मोक्ष पानेके लिए मेरा आश्रय लेकर प्रयत्न करते हैं वे ब्रह्मको जानते हैं। वे सम्पूर्ण अध्यात्म और समग्र कर्मको जानते हैं ।

साधिभूताधिदेवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।

प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥ ( ७, ३०)

जो व्यक्ति मुझे अधिभूत सहित, अधिदैव सहित तथा अधियज्ञ सहित जानते हैं, मरणकाल पर्यन्त इसी तरह जानते हैं वे स्थिर हैं। भूतोंका स्वामी, देवोंका स्वामी