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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।

यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥ (८,१३)

शरीरके सभी द्वारोंको बन्द करके, मनका हृदयमें निरोध करके, अपने प्राणोंको मस्तकमें प्रस्थापित करके जो स्थिर हो जाता है और जो व्यक्ति 'ओम्' शब्दके उच्चारणके द्वारा ब्रह्मका स्मरण करके मुझे भजता हुआ देहत्याग करता है वह परमगतिको प्राप्त होता है ।

पिछले श्लोकमें अन्य भावोंकी बात की गई है। यहाँ केवल भगवानके ध्यान- की ही बात है।

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।

तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥ (८,१४)

जिस व्यक्तिका चित्त कहीं दूसरी जगह नहीं जाता और जो सतत् मेरा स्मरण करता है, मैं ऐसे ही नित्ययुक्त योगीके लिए सुलभ हूँ ।

मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।

{c|नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धि परमां गताः । (८,१५)}}

जिन महात्माओंने परम संसिद्धि प्राप्त कर ली है, वे मेरे पास पहुँचनेके बाद दुःखके धाम, अशाश्वत पुनर्जन्मको प्राप्त नहीं करते ।

पुनर्जन्ममें दुःखकी क्या बात है ?

एक विद्यार्थी: हर बार मनुष्य होना सम्भव नहीं है।

बापू : हम बन्दर भी हो जायें तो क्या हरज है ? सदा नाचते-कूदते रहेंगे। दूसरा विद्यार्थी : क्या हम मरने के बाद ब्राह्मण होकर पैदा हो सकते हैं ?

क्या वह स्थिति उत्तम नहीं है, जिसे प्राप्त करनेके बाद फिर मरना ही नहीं पड़ता। मरना कोई पसन्द नहीं करता। जो पसन्द करता है वह बार-बार मरता । जिसे कभी मरना ही नहीं है वह तो देहका मोह छोड़ देता है। उसके सभी द्वारों- को झटपट बन्द कर देता है। वह देहका विचार छोड़ देता है। उसका दमन करता रहता है। जो ऐसा करे, उसके लिए मरण शेष नहीं बचता । जन्म दुःखका घर इसीलिए है कि वह सदा मरणसे जुड़ा हुआ है। पक्षीगण कलरव करते रहते हैं, किन्तु वे सज्ञान नहीं हैं। कह सकते हैं वे अज्ञानके अधीन हैं। यदि कोई सभी लड़कों- को पक्षी बना दे तो? परमपद, मोक्ष तो वह है जिसमें जन्म, मरण, रोग, राग-द्वेष, कुछ नहीं होता।

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शुक्रवार, ६ अगस्त, १९२६
 

बड़े-बड़े पर्वत और सूर्य, चन्द्र, तारागण भी अशाश्वत हैं। जिनके नाम-रूप हैं ऐसी सभी वस्तुएँ-वस्तुमात्र अशाश्वत है । यदि हमारी आयु करोड़ों वर्षकी होती तो शायद हमें अशाश्वतका भान न होता। हमें सूरजके विषयमें अशाश्वतताका अनुभव नहीं