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'गीता-शिक्षण'

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रविवार, ८ अगस्त, १९२६
 

हम मनुष्यगण चौबीस घंटेका एक रातदिन गिनते हैं। नाककी नोकके ऊपर ध्यान रखकर जो ईश्वरका चिन्तन करेगा वह सुखी होगा, ऐसा कहा जाता है । किन्तु हमें नाककी अनीसे आगे चलना चाहिए । दीर्घदर्शी बनना चाहिए। ज्ञानी बनना चाहिए। जो ऐसा करेगा, वह देखेगा कि वस्तुओंका स्वरूप जैसा हम देखते हैं वैसा नहीं है। यह जाननेके लिए कि ब्रह्माका दिन एक हजार युगकी अवधिवाला है, हमें 'गीता' पढ़नेकी जरूरत नहीं है। यदि हम विचार करें तो स्वयं इतना समझ ले सकते हैं। हमें ऐसा लगता है कि सूर्यके सदा बने रहनेमें कोई संदेह नहीं है। जो ज्ञानी है वह विराट् कालके चक्रमें किसी भी एक बिन्दुपर से अखिल कालके स्वरूपका विचार कर सकता है । वह तो समस्त संयोगोंको एक-साथ सामने रखकर विचार कर लेता है। किन्तु सामान्य व्यक्ति ऐसा नहीं करता। वह तो यही कहेगा कि मैंने किसीको इन्द्रिय-निग्रह करते नहीं देखा; और इसीलिए वह इसपर से यही अनुमान लगायेगा कि यह एक ऐसी बात है जो सध नहीं सकती और इसे साधना भी नहीं चाहिए। यदि हम इस तरहके अनुमान निकालें तो हमारा नाश हो जायेगा । यह तो सरासर गलत अनुमान है ।

यदि हमें दिन और रातको समझना हो तो उसका कोई प्रमाण निश्चित करना पड़ेगा। अनन्त कालका क्या प्रमाण निश्चित किया जाये। हजार युगका दिन और हजार युगकी रात । ब्रह्माण्डमें रात और दिनका यह प्रमाण बतलानेका आशय यह है कि आदमीको धीरज रखना चाहिए। यदि परिणाम प्राप्त होने में समय लग रहा हो तो निराश नहीं होना चाहिए । चरखेपर श्रद्धा रखें; चार-पाँच सालकी तपश्चर्यासे क्या हो सकता है । हमें अपने जीवनमें सफलता मिलते न दिखे, किन्तु फिर भी हमें विश्वास रखकर स्थिर रहना चाहिए और प्रयत्न करते ही जाना चाहिए। जब चरखेके बारेमें यह बात कही जा सकती हो, तो सत्य और अहिंसाके विषयकी तो चर्चा ही क्या ! इसलिए प्रयत्न तो सतत् ही किया जाना चाहिए । सतत् प्रयत्न करनेवालेको न निराश होना है, न अभिमान करना है। हमें याद रखना चाहिए कि हजारों युग मिलकर एक दिन बनाते हैं और हजारों पार्वतियोंमें से एक पार्वती सफल हुई। जाने कितनी पार्वतियाँ खप गईं, शम्भु खप गये, तब कहीं जाकर एक पार्वती और एक शम्भुका निर्माण हुआ। तपबलके फलित होनेके बारेमें इतनी बात समझ लेना चाहिए।

अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।

राज्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ।। (८,१८)

जब ब्रह्माका दिन उदित होता है, तब अव्यक्तमें से व्यक्त प्रकट होता है । जो प्राणी अदृश्य थे, दृश्य हो जाते हैं और जब रात शुरू होती है तब संसारका प्रलय हो जाता है अर्थात् संसार अव्यक्त हो जाता है। संसार पुनरावर्ती है। यह माननेका भी कोई कारण नहीं है कि ब्रह्माण्ड स्थिर है। वह तो चक्करपर चक्कर