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'गीता-शिक्षण'

उसके इसी देहमें निर्मल हो जानेकी सम्भावना है । हे कौन्तेय, यह निश्चित मान कि मेरा भक्त नाशको प्राप्त नहीं होता ।

इसके देहका तो नाश हो जाता है किन्तु ऐसा व्यक्ति दुष्टात्मा न बनते हुए साधु बनकर देह छोड़ता है ।

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।

स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥ (९, ३२)

जो व्यक्ति मेरा आश्रय लेता है, वह पापयोनि हो तो भी, नीचेसे-नीचे चाण्डाल कुटुम्बमें जन्मा हो तो भी, वह स्त्री, वैश्य, शूद्र हो तो भी, उत्तम गतिको प्राप्त करता है।

इस श्लोकके द्वारा भगवानने जगत्को एक बड़ा आश्वासन दे दिया है। यह वेदवादियोंको भगवानका जवाब है। वेदवादियोंका अर्थ है यह कहनेवाले लोग कि जिन्होंने 'वेद' नहीं पढ़े उन्हें ईश्वर नहीं मिलेगा । उस कालमें स्त्री, वैश्य, शूद्रोंके विषयमें ऐसी मान्यता थी कि उन्हें मोक्ष नहीं मिलता। कृष्ण तो स्वयं नन्दके यहां गायें चराकर शूद्र बन गये थे । गोपालन और खेती वैश्योंका धन्धा ही था । खेती करने- वाले अन्तमें शूद्र कहलाये। श्रीकृष्णने कहा कि भले ही स्त्रियाँ, वैश्य और शूद्र 'वेद' नहीं पढ़ पाते, फिर भी उन्हें सद्गति अवश्य मिल सकती है। जो 'वेद' को नहीं जानता, किन्तु ब्रह्मको जानता है और जिसका अन्तर शुद्ध हो गया है उसे निश्चय ही सद्गति प्राप्त होती है ।

कि पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।

अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥ ( ९,३३)

यदि यह सत्य है तो फिर पवित्र ब्राह्मणों, भक्तों और राजर्षियोंकी तो मेरी सुखहीन इस लोकमें शरण में आनेपर सद्गति होती ही है। इसलिए अनित्य और मनुष्य-शरीरको ग्रहण करनेके बाद तू मुझे भज ।

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः ।। (९,३४)

अपने मनको मुझमें लीन कर दे, मेरा भक्त बन, मेरा यज्ञ कर और मुझे प्रणाम कर । मुझमें लीन होकर मेरा ही ध्यान रखकर अपनी आत्माको मेरे साथ नियुक्त करके तू एकतार हो जायेगा तो मैं तुझे अपनेमें खींच लूंगा।

अलबत्ता तुझे हठ किये बिना खिच जाना चाहिए । तू मुझे नहीं खींच सकता, में तुझे खींच सकता हूँ। तू इस धागेको तोड़ सकता है किन्तु तेरे सिवा कोई और इसे नहीं तोड़ सकता ।

इस प्रकरणका नाम राजविद्या और राजगुह्ययोग रखा गया है। कहा गया है कि मैंने तुझे उत्तमसे-उत्तम ज्ञान और उत्तमसे-उत्तम रहस्य अर्थात् योग क्या है और क्षेम क्या है, यह बता दिया । योग तो भगवानके साथ साधा जाना है। हमारा उद्देश्य