पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निर्विकार शरीरमें रोग होना सम्भव नहीं। रागके बिना रोग नहीं होता। जहाँ विकार होगा वहाँ राग अवश्य होता है और जहाँ राग है वहाँ मोक्ष सम्भव नहीं है। मुक्त पुरुषके लिए आवश्यक वीतरागता अथवा तीर्थंकरकी विभूतियाँ श्रीमद्को प्राप्त नहीं हुई थीं। सामान्य मनुष्योंकी तुलनामें श्रीमद्की वीतरागता और विभूतियाँ बहुत ज्यादा थीं। इसलिए हम उन्हें लौकिक भाषामें वीतराग और विभूतिमान कहते हैं। लेकिन मुक्त पुरुषके लिए जिस वीतरागताका और तीर्थंकरकी जिन विभूतियोंकी कल्पना की गई है, उनतक श्रीमद् नहीं पहुँच सके थे, ऐसा मेरा दृढ़ मत है। यह बात मैं एक महान् और पूजनीय व्यक्तिके दोष बतानेके लिए नहीं कह रहा हूँ अपितु उनके और सत्यके साथ न्याय करनेके लिए ऐसा लिख रहा हूँ। हम सब संसारी जीव हैं जबकि श्रीमद् असंसारी थे। हमें अनेक योनियोंमें भटकना पड़ेगा जबकि श्रीमद्को कदाचित् केवल एक और जन्म ही काफी होगा। हम शायद मोक्षसे दूर जा रहे हैं जबकि श्रीमद् वायुवेगसे मोक्षकी ओर बढ़ रहे थे। यह कम पुरुषार्थ नहीं है। ऐसा होनेपर भी मुझे कहना चाहिए कि जिस अपूर्व पदका श्रीमद्ने स्वयं सुन्दर वर्णन किया है उस पदको वे प्राप्त नहीं कर सके थे। उन्होंने खुद ही कहा है कि यात्राके मार्ग में सहाराका मरुस्थल बीचमें आ गया और उसे पार करना बाकी रह गया। लेकिन श्रीमद् राजचन्द्र असाधारण व्यक्ति थे। उनके लेखोंमें उनके अनुभवका सार है। जो उन्हें पढ़ेगा, उनपर विचार करेगा और उनके अनुरूप चलेगा उसके लिए मोक्ष सुलभ हो जायेगा, उसके कषाय, उसकी भोगलालसा क्षीण होगी, वह संसारके प्रति उदासीन हो जायेगा और देहका मोह छोड़कर आत्मार्थी बनेगा।

इससे पाठक देखेंगे कि श्रीमद्के लेख अधिकारी व्यक्तिके लिए हैं। सारे पाठक उनमें रस नहीं ले सकते। टीकाकारको उनमें टीका करनेका कारण मिलेगा लेकिन श्रद्धावान तो उनसे आनन्द ही आनन्द प्राप्त करेंगे। मुझे हमेशा ऐसा लगा है कि उनके लेखोंसे सत्यका निर्झर बह रहा है। उन्होंने अपना ज्ञान बघारनेके लिए एक भी शब्द नहीं लिखा। लेखकका हेतु पाठकको अपने आत्मानन्दमें भागीदार बनाने का था। जो आत्म-क्लेशको दूर करना चाहता है, जो अपना कर्त्तव्य जाननेको उत्सुक है उसे श्रीमद्के लेखोंमें से बहुत-कुछ मिल जायेगा, ऐसा मेरा विश्वास है फिर चाहे वे हिन्दू हों अथवा अन्यधर्मी।

और इस आशासे कि मेरे द्वारा लिखित श्रीमद्का स्मरण ऐसे व्यक्ति के लिए उपयोगी सिद्ध होगा, मैं उन्हें इस प्रस्तावनायें स्थान दे रहा हूँ।

रायचन्दभाईके कुछ संस्मरण

प्रकरण १: प्रास्ताविक

मैं जिनके पवित्र संस्मरणोंको लिखना आरम्भ कर रहा हूँ उन स्वर्गीय श्रीमद् राजचन्द्रकी जयन्ती आज अर्थात् कार्तिकी पूर्णिमा सम्वत् १९७९ है। मेरा प्रयत्न श्रीमद् राजचन्द्रका जीवन-चरित्र लिखनेका नहीं है। यह कार्य मेरी शक्तिके बाहर है। मेरे पास सामग्री नहीं है। यदि जीवन-चरित्र लिखना ही हो तो मुझे चाहिए