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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।

इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना

मैं 'वेदों' में 'सामवेद' हूँ, देवोंमें इन्द्र हूँ, इन्द्रियोंमें मन हूँ और प्राणियोंमें चेतन हूँ ।

रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यज्ञरक्षसाम् ।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्

मैं रुद्रोंमें शंकर, यक्ष और राक्षसोंमें कुबेर, वसुओंमें अग्नि और पर्वतोंमें मेरु हूँ ।

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।

सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ।। ( १०,२४)

हे पार्थ, पुरोहितोंमें मुख्य मुझे बृहस्पति जान । मैं सेनापतियोंमें कार्तिकेय और जलाशयोंमें सागर हूँ ।

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।

यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ।। (१०, २५)

मैं महर्षियोंमें भृगु और वचनोंमें एकाक्षरी ॐ हूँ । यज्ञोंमें जपयज्ञ हूँ और स्था- वरोंमें हिमालय हूँ ।

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।

गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥ (१०, २६)

समस्त वृक्षोंमें मैं अश्वत्थ अर्थात् पीपलका वृक्ष हूँ। देवर्षियोंमें नारद, चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ ।

उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् ।

ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥ (१०, २७)

मुझे अश्वोंमें अमृतके निमित्तसे उत्पन्न उच्चैःश्रवा जान । हाथियोंमें मैं ऐरावत और मनुष्यों मैं राजा हूँ ।

आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् ।

प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥ (१०, २८)

शस्त्रास्त्रोंमें मैं वज्र हूँ, गायोंमें कामधेनु हूँ, प्रजोत्पत्तिका कारण कामदेव में हूँ और सर्पोंमें मैं वासुकि हूँ ।

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।

पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥ (१०, २९)

नागोंमें शेषनाग, जलचरोंमें गरुड़, पितरोंमें अर्यमा और दण्ड देनेवालोंमें मैं यम हूँ ।

प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।

मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥ (१०, ३०)

दैत्योंमें प्रह्लाद हूँ, गिनती करनेवालोंमें मैं काल (समय) हूँ, पशुओंमें में सिंह हूँ और पक्षियोंमें गरुड़ हूँ ।