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'गीता-शिक्षण'

सव्यसाचीका अर्थ है जो बायें हाथसे बाण चला सके अर्थात् जो दोनों हाथों से बाण चला सकता हो ।

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च

कर्ण तथान्यानपि योधवीरान् ।

मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा

युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥ (११, ३४)

द्रोण, भीष्म, जयद्रथ तथा अन्य योद्धागण मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। इसलिए तू व्यथा मत मान । इन सबोंपर अर्थात् दुश्मनोंपर तुझे विजय प्राप्त करनी है इसलिए युद्ध कर ।

एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य

कृतांजलिवॅपमानः किरीटी ।

नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य ॥ (११, ३५)

संजयने कहा कि केशवके इन वचनोंको सुनकर, हाथ जोड़कर, कांपते हुए, नम- स्कार करके गद्गद कण्ठसे भयभीत होकर अर्जुनने कृष्णसे ऐसे वचन कहे :

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या

जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति

सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः ॥ (११, ३६)

अर्जुन बोला : हे हृषीकेश, आप जो कहते हैं वह योग्य ही है। आपकी प्रकीति अर्थात् आपके नामस्मरण और कीर्तनसे जगत् हर्षित होता है और सुखी होता है । भयभीत होकर राक्षस भागते हैं और सिद्धसंघ आपको नमस्कार करते हैं।

कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्

गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे ।

अनन्त देवेश जगन्निवास

त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत् ॥ (११, ३७)

और ऐसा क्यों न हो ? वे आपको नमन क्यों न करें ? आप राक्षसोंके हन्ता हैं, राक्षस अर्थात् बाहर और भीतर स्थित रिपुगण । यदि नदी हमें निगल जाये तो भी क्या होता है ? हमारे भीतर जो तूफान उठ रहा है वह इससे अधिक भयानक है। हृदयके भीतर स्थित राक्षसोंको कौन मार सकता है। इसलिए कहा :

आपको कौन नमस्कार नहीं करेगा ? आप तो गुरुओंके गुरु, ब्रह्माके भी आदि- कर्त्ता, अनन्त देवेश, जगन्निवास तथा सत्-असत्से परे अक्षर पुरुष हैं ।