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'गीता-शिक्षण'

है । यदि संसार कहे कि हाँ, यह ईश्वरका भक्त है और उसके सारे काम ईश्वर ही करता है तो इसे ठीक माना जा सकता है। उससे यदि कोई पूछे कि क्या तुम्हें ज्ञान हो गया है तो वह कहेगा कि मैं नहीं जानता, ईश्वर जानता है। बुद्धिमें बड़ी जल्दी उफान आ जाता है और बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। किन्तु जो व्यक्ति ज्ञानमय हो गया है, उसे तो सयाना बनना ही नहीं है। राम, कृष्ण, भगवान् हो गये यह सारी हमारी कल्पना है। राजा रामने पाखण्ड फैलाया या नहीं; सो हमें क्या मालूम । हम यह भी नहीं जानते कि कृष्ण कोई दुष्टातिदुष्ट मनुष्य तो नहीं था। किन्तु हमें ऐसी तमाम शंकाएँ करनेका अधिकार नहीं है। हम जिसे भजें उसे पूर्ण पुरुषोत्तम मानकर भजें, उत्तम बात तो यही है । हम तो ऐसा ही मानें कि हिन्दु- स्तानकी जनता जिसे ईश्वर मानती है हम भी उसे ईश्वरका रूप मानकर भजते हैं।

यह श्लोक स्वेच्छाचारका समर्थन नहीं करता, बल्कि भक्तिकी महिमा सूचित करता है। कर्म-मात्र जीवके लिए बन्धनकारी है किन्तु यदि वह अपने समस्त कर्मोको परमात्माके चरणोंमें डाल दे तो वह बन्धनमुक्त हो जाता है। इस तरह जिसमें से कर्ता होनेके अहंभावका नाश हो गया है और जो चौबीसों घंटे अन्तर्यामीको पहचान रहा है, वह पाप-कर्म करता ही नहीं। पापका मूल ही अभिमान है। जहाँ 'मैं' नहीं है, वहाँ पाप नहीं है। यह श्लोक पाप-कर्म न करनेकी युक्ति प्रस्तुत करता है ।

ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।

अन्य सांख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ।। (१३, २४)

कुछ लोग ध्यानसे, कुछ लोग आत्माको आत्मासे, कुछ लोग सांख्य योगसे, कर्मयोगसे अथवा ज्ञानयोगसे ईश्वरको जानते पहचानते हैं ।

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गुरुवार, २३ सितम्बर, १९२६

अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।

तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः ॥ (१३, २५)

कुछ लोग इस तत्त्वको न जानते हुए भी दूसरोंसे सुनकर उसकी उपासना करते हैं। वे श्रुतिपरायण होकर मृत्युको उत्तीर्ण कर जाते हैं।

यदि हम ईश्वरार्पण करके काम करेंगे तो तर जायेंगे यह सुनकर तदनुसार आचरण करें तो अपने विषयमें भी कह सकेंगे कि 'सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽ भिजायते' सब तरहका आचरण करते हुए भी वह फिर जन्म प्राप्त नहीं करता ।

यावत्संजायते किंचित्सत्त्वं स्थावरजंगमम् ।

क्षेत्रक्षेत्रज्ञ संयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ ।। (१३, २६)


जो-कुछ स्थावर अथवा जंगम वस्तु उत्पन्न होती है वह क्षेत्र अर्थात् प्रकृति और क्षेत्रज्ञ अर्थात् पुरुषके संयोगसे होती है, तू इसे जान ले।