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'श्रीमद् राजचन्द्र' की भूमिका

बाहर, यदि इच्छा या जिज्ञासा हो तो, मिल जाता है और मान प्राप्त करनेके लिए विलायत अथवा कहीं जाना नहीं पड़ता। लेकिन गुणको यदि मानकी आवश्यकता हो तो वह उसे मिल जाता है। यह पदार्थ-पाठ मुझे बम्बई में उतरनेके साथ ही मिल गया।

कविके साथ मेरा यह परिचय आगे बहुत बढ़ा। स्मरणशक्ति अनेक लोगोंकी तीव्र होती है, इससे आश्चर्यचकित होनेकी कोई जरूरत नहीं। शास्त्र-ज्ञान भी बहुत लोगों में देखने में आता है। लेकिन यदि वे संस्कारी न हों तो उनके पाससे फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती। जहाँ संस्कार शुभ हों वहीं स्मरणशक्ति और शास्त्र ज्ञानका मेल शोभा देता है और संसारको शोभान्वित करता है। कवि संस्कारी ज्ञानी थे।

प्रकरण ३ : वैराग्य

ऐसा अपूर्व अवसर कब आयेगा? कब होऊँगा बाहर और भीतर निर्ग्रन्थ?
सब सम्बन्धोंके कठिन बन्धनको भेदकर, कब चलूंगा महापुरुषके मार्गपर?
सम्पूर्ण रीतिसे उदासीन वृत्ति धारण किये हुएको देह केवल संयमके लिए ही होगी,
वह अन्य किसी कारणसे, कोई [ अन्यथा ] कल्पना नहीं करेगा; उसकी देहमें भी
मूर्छाका लेश नहीं होगा।

अठारह वर्षकी आयु में लिखित रायचन्दभाईकी कविताके ये पहले दो पद हैं। इन पंक्तियोंमें जो वैराग्य झलक रहा है, उसे मैंने उनके दो वर्षके प्रगाढ़ परिचयमें क्षण-क्षण देखा। उनके लेखोंकी एक असाधारण विशेषता यह है कि उन्होंने स्वयं जो अनुभव किया, केवल वही लिखा। उनमें कहीं भी कृत्रिमता नहीं है। दूसरोंपर प्रभाव डालनेके लिए उन्होंने एक पंक्ति भी लिखी हो, ऐसा मैंने नहीं देखा। उनके पास हमेशा कोई-न-कोई धर्म-पुस्तक और एक कोरी बही पड़ी ही रहती थी। उनके मनमें जो विचार आते वे उन्हें उस बहीमें लिख देते थे। कभी गद्य और कभी पद्य। 'अपूर्व अवसर' नामक कविता भी इसी तरह लिखी गई होगी।

खाते, बैठते, सोते, प्रत्येक क्रिया करते हुए उनमें वैराग्य तो होता ही था। उन्हें कभी भी जगतके किसी भी वैभवके लिए मोह हुआ हो, ऐसा मैंने नहीं देखा।

मैं उनके नित्यक्रमको आदरपूर्वक परन्तु अत्यन्त बारीकीसे देखता था। भोजन में जो मिलता उसीमें सन्तुष्ट रहते। वेशभूषा बिलकुल सादी थी, धोती और कुरता, अंगरखा और सूत तथा रेशम मिले कपड़ेकी पगड़ी। यह कोई बहुत साफ अथवा इस्त्री किए हुए होते थे, सो याद नहीं। जमीनपर बैठना अथवा कुर्सीपर बैठना, दोनों उनके लिए समान थे। अपनी दुकानमें होते तब सामान्यतः वे गद्दीपर बैठते थे

उनकी चाल धीमी थी, और देखनेवाला समझ सकता था कि चलते हुए भी वे विचारमग्न हैं। उनकी आँखोंमें अद्भुत शक्ति थी — अत्यन्त तेजस्वी; उनमें विह्वलता तनिक भी न थी। दृष्टिमें एकाग्रता थी। चेहरा गोल, होंठ पतले, नाक न तो नुकीली