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'गीता-शिक्षण'

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शनिवार, २ अक्तूबर, १९२६
 

हम लोग नित्य नया जन्म लेते रहते हैं। आरोग्यशास्त्रकी दृष्टिसे सात वर्षमें व्यक्तिका समूचा शरीर बदलकर नया हो जाता है। हमारा शरीर सातवें वर्षमें ही एकदम जादूसे नहीं बदल जाता, बल्कि पुराना शरीर धीरे-धीरे क्षीण होकर उसकी जगह नया होता रहता है। इस तरह उत्पत्ति और नाश एक-दूसरेसे लगे-लगाये चलते रहते हैं। ऐसी कोई भी जगह नहीं है जिसमें से कुछ-न-कुछ निकाले बिना, जिसका थोड़ा-बहुत नाश किये बिना नया रखा जा सके, अथवा नई वस्तु उत्पन्न की जा सके। हमारा मन भी प्रतिदिन अशक्त और सशक्त होता जाता है। जगतमें सभी कुछ गतिमान है। स्थिर कुछ भी नहीं है। केवल परमात्मा ही ऐसा है जो स्थिर भी है और अस्थिर भी ।

गुणातीतका अर्थ है शून्यवत् । किन्तु ऐसी स्थिति कब प्राप्त हो सकती है ? श्रीमद् राजचन्द्रने अपने 'अपूर्व अवसर' नामक काव्यमें कहा है, "बली सीन्दरीवत् मात्र रहे देह जो | " ऐसी स्थिति हो जानी चाहिए। जली हुई रस्सीकी तरह आकृति ही बच रहनी चाहिए। उस आकृतिमें रस्सीके कुछ भी गुण-दोष नहीं बचते। हम ऐसी जली हुई रस्सीको गुणातीत कह सकते हैं। क्योंकि न अब वह बाँध सकती है और न कुएँसे पानी खींचकर सींचने में सहायक हो सकती है। इसी तरह गुणातीत व्यक्ति भी जली रस्सी-जैसा है। रस्सीमें जैसे साँपका आभास होता है, उसी तरह यदि हम ऐसे व्यक्तिको पत्थरकी तरह जड़ अथवा कर्मशून्य समझें तो इससे उसका कुछ बनता-बिगड़ता नहीं। हमारा धर्म है कि हम ऐसी जली रस्सीकी तरह बन जायें ।

इस गुणातीत स्थितिको पानेके लिए सात्विक गुणोंका विकास ही एक उपाय है। क्योंकि उस स्थितिको पानेके लिए अभय, अमान, अदम्भ जैसे गुणोंका विकास करना आवश्यक होता है। जबतक देह है तबतक कुछ-न-कुछ दोष, हिंसा तो शेष है ही। इसलिए हमें अधिकसे-अधिक सात्विक बनना चाहिए और हम इतना ही कर सकते हैं ।

गुणातीत एक काल्पनिक स्थिति है। जान पड़ता है, यह वास्तविक आचरणकी स्थिति नहीं है। आचरणकी स्थिति तो अत्यन्त सात्विकता प्राप्त करनेकी स्थिति है। जो व्यक्ति सम्पूर्ण जान पड़ता है उसके विषयमें भी यह नहीं कहा जा सकता कि वह गुणातीत है। इतना ही कहा जा सकता है कि वह गुणातीत-जैसा है। अंग्रेजीमें कहा गया है कि " 'बाहरसे तो पापी और पुण्यात्मामें कोई भेद दिखाई नहीं देता, किन्तु जो जितना बड़ा पापी है, वह उतना बड़ा पुण्यवान बन सकता है।"

ऐसा [ अत्यन्त सात्विक ] व्यक्ति अपने नीच कर्मोपर विचार करता हुआ पापको हटाता चला जाता है। रम्भा-जैसी सुन्दर स्त्री भी सामने आ जाये, तो उसके लेखे

१. इस दिनका विवरण महादेवभाईंका लिखा हुआ नहीं है।

२. यह देह जली रस्सी जैसी रह जाये ।