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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अध्याय १६

[ १७९ ]

शनिवार, ९ अक्तूबर, १९२६
 

अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः ।

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम् ।

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं होरचापलम् ॥

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता ।

भवन्ति संपदं देवीमभिजातस्य भारत । (१६, १-३)

अभय, अन्तःकरणकी शुद्धि, ज्ञान और योगके प्रति निष्ठा, दान, दम, इन्द्रिय- निग्रह, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शान्ति, अपैशुन (किसीकी चुगली न खाना), भूतदया, अलोलुपता (लालसाका त्याग), मृदुता, मर्यादा, अचंचलता, तेज, क्षमा, धृति, शौच, अद्रोह, निरभिमानता - ये सारे गुण उसमें होते हैं जो दैवी सम्पत्ति लेकर जन्मा हो ।

सत्त्वसंशुद्धि अर्थात् आत्मशुद्धि अथवा अन्तःकरणकी शुद्धि । 'ज्ञानयोग व्यवस्थिति' अर्थात् स्थिर ज्ञानकी व्यवस्थिति । 'ज्ञानव्यवस्थिति' का अर्थ है वह अनुभव-ज्ञान जो सदाके लिए स्थिर हो गया है । योगव्यवस्थितिका अर्थ हुआ सदा ईश्वरकी प्रतीति, ईश्वर-ज्ञान, ईश्वर-तादात्म्य । अहिंसामें ज्ञानपूर्वक दयाभावसे की हुई हिंसा भी शामिल है । (डा० नानजी जिस दिन ऑपरेशन करते थे उसके एक दिन पहले उपवास रखते थे और हेतु यह होता था कि उनके भीतरके क्रोध इत्यादि विकारोंका रोगीको फल न भोगना पड़े।) क्रोधहीन दण्ड देनेवाला शिक्षक तो रोते-रोते दण्ड देगा। क्षमा तो युधिष्ठिरकी - विराट राजाके यहाँ जब विराटने उन्हें मारा तब उन्होंने नाकसे गिरते हुए खूनको धरतीपर नहीं टपकने दिया। क्षमाका अर्थ अपकारके बदले उपकार । ऐसी तीव्र वस्तु है क्षमा ।


[ १८० ]

रविवार, १० अक्तूबर, १९२६
 

दम्भो दर्वोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च ।

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ॥ (१६, ४)

आसुरी सम्पत्तियुक्त जन्म लेनेवालेमें दम्भ, दर्प, क्रोध, पारुष्य और अज्ञान होते हैं ।

दम्भ अर्थात् जो अपने पास नहीं है उसके होनेका पाखण्ड करना । दर्प अर्थात् जिसकी हममें कमी है, उसका आधिक्य बताना। अभिमान अर्थात् हमारे पास जो गुण है उसकी डींग मारना नारदजीने कामदेवको पराजित किया तो उनके मनमें