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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। ऐसा व्यक्ति चौबीस घंटोंमें से आधा घंटा आत्माको बहलाने और साढ़े तेईस घंटे शरीरको तुष्ट करनेके लिए रखता है ।

चरखा इत्यादिकी प्रवृत्ति राजसी है; सात्विकी भी हो सकती है ? भावनाके आधारपर ही इसका निर्णय किया जा सकता है । यदि केवल पैसेके ध्यानसे चरखा चलाया जाये तो राजसी और जगत्के भलेके विचारसे यज्ञार्थ चलाया जाये तो सात्विकी ।

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम् ।

मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ॥ (१८, २५)

परिणाम, हानि, हिंसा और अपनी शक्तिका विचार किये बिना जो कर्म मोह- वश किया जाता है, वह तामस कर्म कहलाता है । तामस कर्ममें परिणाम जाने बिना व्यक्ति कूद पड़ता है । फलकी इच्छा रखे बिना काम करनेवाला व्यक्ति फल जानता तो है किन्तु वह उसकी इच्छा नहीं करता ।

}मंगलवार, २६ अक्तूबर, १९२६
 

मुक्त संगोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः ।

सिद्धयसिद्धयोनिर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥ (१८, २६)

जिसमें आसक्ति नहीं है, जो अहंभावसे मुक्त हो गया है, जो दृढ़ता और उत्साह- युक्त है, जो सफलता और निष्फलतामें हर्ष - शोक नहीं करता, वह सात्विक कर्त्ता है । अहंकारकी भावनासे मुक्तका अर्थ हुआ निमित्तमात्र बनकर काम करनेवाला । वह आसक्तिहीन होता है, किन्तु इस कारण वह ढीला नहीं पड़ जाता। वह तो अधिकसे- अधिक क्रियाशील होता है। भक्त और भगवानका सम्बन्ध एक दृष्टिसे प्रेमी और प्रेमिकाका सम्बन्ध है । यद्यपि है इसमें उत्तर और दक्षिणका अन्तर । भक्त तो अलिप्त रहता है जब कि आसक्त प्रेमी प्रतिदिन क्षीण होता चला जाता है । यहाँ अंग्रेज हाकिम आते हैं। उनकी धृति और उत्साहका क्या कोई पार है ? वे योगियों जैसे लगते हैं; किन्तु वे मुक्तसंग नहीं हैं, परिणामवादी हैं। परिणामके लिए काला-सफेद करते रहते हैं । किन्तु जो व्यक्ति मुक्तसंग है, उसके लिए तो कर्म, कर्म और कर्म; निश्चय, निश्चय और निश्चय, तथा उत्साह, और उत्साह ही होता है। चरखा चलाते हुए भी ऐसा आदमी धृति और उत्साहपूर्ण होगा । ऐसा कर्त्ता सात्विक कर्त्ता कहलाता है ।

रागी कर्मफलप्रेप्सुलुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः ।

हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः ॥ (१८, २७)

रागी, कर्मफलकी प्रगाढ़ इच्छा रखनेवाला, लोभी, हिंसा करते हुए मुड़कर न देखनेवाला, अपवित्र तथा सिद्धि और असिद्धिको लेकर हर्ष और शोकसे भरा हुआ व्यक्ति राजसी कर्त्ता है।