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'गीता-शिक्षण'

अयुवतः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः ।

विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ॥ (१८, २८)

अव्यवस्थित, असंस्कारी, अभिमानी, शठ, अनिश्चयी और आलसी, विषादी तथा दीर्घसूत्री व्यक्ति तामस कर्त्ता कहलाता है।

बुद्धर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु ।

प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनंजय ॥ (१८, २९)

अब मैं तुझे बुद्धि और घृतिका पूरा-पूरा और अलग-अलग तीन प्रकारका भेद बताता हूँ । तू उन्हें सुन ।

प्रवृत्ति च निवृत्ति च कार्याकार्ये भयाभये ।

बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः पार्थ सात्त्विकी ॥ (१८, ३०)

प्रवृत्ति और निवृत्ति, कार्य और अकार्य, भय और अभय,' बन्धन और मोक्ष, जो बुद्धि इनका निर्णय करना जानती है, वह सात्विक है।

यया धर्ममधर्मं च कायं चाकार्यमेव च ।

अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ॥ (१८, ३१)

जो व्यक्ति धर्म और अधर्म, कार्य और अकार्यको सम्यक् रूपसे नहीं जानता, उसकी बुद्धि राजसी है।

'अधर्म धर्ममिति या मन्यते तमसावृता ।'

सर्वार्यान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ॥ (१८, ३२)

अंधेरेसे घिरी हुई जो बुद्धि अधर्मको धर्म मानती है और सारे अर्थ उलटे लगाती है -- जिसे सब-कुछ टेढ़ा दिखता है, वह तामसी बुद्धि है।

[ १९३ ]

बुधवार, २७ अक्तूबर, १९२६
 

धृत्या वया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः ।

योगेनाव्यभिचारिण्या धृति : सा पार्थ सात्विकी ॥ (१८, ३३)

जो अव्यभिचारी धृति मन, प्राण और इन्द्रियोंकी क्रियाओंको योगसे धारण करती है, वह धृति सात्विक है।

जब व्यक्ति दृढ़तापूर्वक कोई निश्चय करके उसके परिणामसे चिपके बिना अपने संकल्पसे चिपका रहता है, उसे नित्य नहीं बदलता, तो वह धृति अव्यभिचारी धृति होगी; योगके द्वारा अर्थात् ईश्वरार्पण बुद्धिके द्वारा ।

१. साधन-सूत्रमें ' भय और अभय' के बाद कोष्ठकमें 'अमुक वस्तुसे बचना चाहिए और अमुक वस्तुसे निर्भय रहना चाहिए' भी लिखा हुआ है।

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