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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहकर स्पष्ट कर देना चाहती है। लघ्वाशी; मैंने अपने भोजनमें केवल पाँच वस्तुएँ लेनेका निर्णय किया है, किन्तु यदि मैं उसके अक्षरका पालन करूँ तो उससे व्रतका सम्यक् पालन नहीं होता। हरिदासने खजूरकी बात की और अच्छे खजूर लाकर दिये। उसने मुझे अच्छी मुद्रामें देखा और एक खजूर मुझे खानेके लिए दिया । मुझे वह अच्छा भी लगा, किन्तु में एकदम सावधान हो गया। मैंने अपने मनमें सोचा कि दूसरोंको जितना मिलता है, यह तो उससे अधिक हो गया। मैंने वह खजूर खा तो लिया, लेकिन मानो वह मेरे गलेमें अटककर रह गया । यदि हमको शरीरसे काम लेना हो तो वह इसी तरह सम्भव है।

इस श्लोकमें बुद्धि इत्यादिको विशुद्ध करनेकी बात कही गई है और लघ्वाशी शब्दका प्रयोग किया है, मिताहारीका नहीं। दो चीजोंसे काम चले तो एकसे चला लिया जाये। खजूरवाली वह घटना शायद इसीलिए हुई कि आज हमें इस श्लोकपर विचार करना था । सम्भव है, कोई व्यक्ति केवल दूध लेनेका व्रत लेकर रोज पन्द्रह सेर दूध पी जाये अथवा उसका खोया बनाकर खाने लगे। भला इसके बजाय वह व्यक्ति दूधमें पानी मिलाकर क्यों न पिये। इंग्लैंडमें एक बैरिस्टर मित्र सोलह घंटे अध्ययन करते थे, और वे अपने सूपमें पानी मिला लेते थे। सच्ची भूख लगी हो तो उस भूखके ही कारण स्वयं जीभमें से अमृत झरने लगेगा ।

ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न कांक्षति ।

समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्ति लभते पराम्

ब्रह्मकी प्राप्तिसे जिसका आत्मा प्रसन्न हो गया है, वह न शोक करता है, न किसी प्रकारकी इच्छा रखता है। वह सभी भूतोंके प्रति समभावसे वर्तन करता है और मेरी पराभक्ति प्राप्त करता है।

भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः ।

ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् ॥ (१८, ५५)

भक्तिसे वह मुझे, मैं यथार्थ रूपमें जैसा हूँ, उसी रूपमें जानता है और इस प्रकार मुझे तात्त्विक रीतिसे जानकर मुझमें प्रवेश कर जाता है।

सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः ।

मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ॥ (१८, ५६)

जो सदा समस्त कर्म करते हुए भी मेरा आश्रय लिये हुए है, वह मेरी कृपासे अपने बलसे नहीं, हमेशा स्थिर और अव्यय पदकी प्राप्ति करता है ।

चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः ।

बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव ॥ (१८, ५७)

समस्त कर्मोंको मनःपूर्वक मुझे अर्पण करके, मेरे प्रति परायण होकर, बुद्धि- योगका अर्थात् ज्ञान जोर ध्यानका आश्रय लेकर निरंतर मुझे चित्तमें धारण कर ।