व्यासप्रसादाच्छुतवानेतद्गुह्यमहं परम् ।
योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम् ॥ (१८, ७५)
योगं संजयने कहा :
महात्मा वासुदेव और महात्मा पार्थ, इन दोनोंके बीचका रोमहर्षक और अद्भुत संवाद मैंने व्यासकी कृपासे सुना। स्वयं योगेश्वर कृष्णसे मैंने यह गुह्य परमयोग सुना।
राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम् ।
केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः ॥ (१८, ७६)
केशव और अर्जुनके बीचके इस पवित्र और अद्भुत संवादको याद करते हुए मुझे बार-बार रोमांच हो जाता है।
यदि हमें इसमें नित्य नवीन रस न मिले तो यह हमारी ही कमी होगी, गीता- कारकी नहीं ।
तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः ।
विस्मयो मे महाराजन्हृष्यामि च पुनः पुनः ॥ (१८, ७७)
हरिके अद्भुत रूपका बारंबार स्मरण करके मुझे महान् विस्मय होता है और मैं बार-बार पुलकित हो उठता हूँ।
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीविजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।। (१८, ७८)
जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धर पार्थ है, वहाँ श्री - देवी लक्ष्मी सम्पत्ति है, विजय है वैभव है, और अविचल नीति है। यह मेरा मत है ।
कृष्णके साथ योगेश्वर विशेषण और अर्जुनके साथ धनुर्धर विशेषणका प्रयोग किया गया है। इसका यह अर्थ हुआ कि जहाँ सम्पूर्ण ज्ञान है और साथ ही तेज है वहाँ श्री, विजय और ध्रुव नीति है। जिसमें ज्ञान है उसमें तदनुसार व्यवहार करनेका पूरा बल भी होना चाहिए। पूरा ज्ञान हो और फिर हो पूरी तरह उसका व्यवहार ।
हमने माना है कि यह कल्पित संवाद है। महाभारतकारने जो कृति प्रस्तुत की है, वह अद्भुत है। उसमें उसने अपने ज्ञानकी पराकाष्ठा दिखा दी है। वह कृष्णके हृदयमें प्रवेश कर गया था । धनुर्धरका अर्थ है कर्त्तव्य-तत्पर व्यक्ति । ऐसा कौन है जो आत्यंतिक ज्ञानको प्राप्त कर चुका हो । किन्तु जो ज्ञान परमज्ञान जैसा लगता हो और फिर व्यक्तिमें तदनुसार व्यवहार करनेका पूरा-पूरा साहस हो, तो उसके लिए हार-जैसी कोई वस्तु नहीं है; बल्कि उसे भूति भी प्राप्त हो सकती है। और उससे अधिक तो वह चाहता ही नहीं है। यदि वह इसी प्रकार आचरण करता रहे, तो उसकी भूलें सुधरती चली जायेंगी । हम मानते तो यह हैं कि सदा सत्य बोलना चाहिए, किन्तु हम जो कुछ बोलते हैं वह कुछ सच, कुछ झूठ होता है। किन्तु जहाँ शुद्ध ज्ञान है, और उस दिशामें पूरा-पूरा प्रयत्न है अर्थात् जहां साधक धनुर्धारी होकर बैठा हुआ है, वहाँ तो नीतिसे स्खलन कदापि नहीं होता ।