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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
किन्तु अभी तो वह मेरी शक्तिके बाहर है,
और इसलिए मनोरथरूप ही है।"[१]

इसलिए, अन्ततः आत्माको मोक्ष देनेवाला स्वयं आत्मा ही है।

रायचन्द्रभाईने अपने लेखोंमें इस शुद्ध सत्यका निरूपण विविध ढंगसे किया है। उन्होंने अनेक पुस्तकोंका अच्छा अध्ययन किया था। उन्हें संस्कृत और मागधी भाषा पढ़ने में तनिक भी कठिनाई महसूस नहीं होती थी। उन्होंने वेदान्तका अभ्यास किया था और 'भागवत्' तथा 'गीता' का भी। जैन पुस्तकें तो जितनी उनके हाथमें आती थीं, वे उन सबको पढ़ जाते थे। पुस्तकें पढ़ने और उनके सार ग्रहण करनेकी उनकी शक्ति अपार ही थी। उन पुस्तकोंके रहस्यको समझनेके लिए उन्हें एक बार पढ़ जाना उनके लिए पर्याप्त था।

उन्होंने अनुवादके द्वारा 'कुरान' और 'जेंद अवेस्ता' आदिका पठन भी कर लिया था।

वे मुझसे कहा करते थे कि जैन-दर्शन उन्हें ज्यादा प्रिय है। उनकी मान्यता थी कि 'जिनागम'[२] में आत्म-ज्ञानकी पराकाष्ठा है। मुझे यहाँ उनके इस मतका उल्लेख अवश्य कर देना चाहिए। अलबत्ता, इसके बारेमें अपना मत व्यक्त करनेके लिए मैं अपने आपको अनाधिकारी मानता हूँ।

रायचन्दभाईके मनमें अन्य धर्मोके प्रति अनादरका भाव नहीं था। वेदान्तके प्रति तो उनमें विशेष अनुराग भी था। वेदान्तीको कवि वेदान्ती ही जान पड़ते थे। मेरे साथ चर्चा करते हुए उन्होंने मुझे कभी यह नहीं कहा कि मुझे मोक्ष प्राप्त करनेके लिए अमुक धर्मका अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने मुझे मेरे आचारपर ही विचार करनेके लिए कहा। मुझे कौन-सी पुस्तकें पढ़नी चाहिए, इस प्रश्नके उत्तरमें उन्होंने मेरी रुचि और मेरे बचपनके संस्कारको ध्यान में रख कर 'गीता' का अध्ययन करनेके लिए कहा और प्रोत्साहित किया तथा दूसरी पुस्तकोंमें 'पंचीकरण', 'मणि- रत्नमाला', 'योगवासिष्ठ' का वैराग्य प्रकरण, 'काव्य दोहन' पहला भाग और अपनी 'मोक्ष माला' पढ़ने का सुझाव दिया।

रायचन्दभाई अक्सर कहा करते थे कि धर्म तो बाड़ोंकी तरह है जिसमें मनुष्य कैद है। जिन्होंने मोक्षकी प्राप्तिको ही पुरुषार्थ माना है, उन्हें अपने भालपर किसी धर्मका तिलक लगानेकी आवश्यकता नहीं है।

तुम चाहे जैसे भी रहो।
जैसे-तैसे हरिको लहो।

यह सूत्र जिस तरह अखाभगतका[३] था, उसी तरह रायचन्दभाईका भी था। धर्मके झगड़ोंसे उनका जी ऊब उठता था, वे उसमें शायद ही पड़ते थे। उन्होंने सब धर्मोके

  1. लगता है, गांधीजीने यहाँ भूलसे प्रथम दो पंक्तियाँ २० वें छंदकी और प्रथम दो पंक्तियाँ २१ छंदकी दे दी हैं।
  2. जैनियोंको धर्म-पुस्तकें
  3. गुजराती कवि।