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'गीता-शिक्षण'

हिंसाके' बिना जगत् नहीं चल सकता, सन्तानोत्पत्तिके विषयमें वैसा नहीं कहा जा सकता। फिर भी स्मृतिमें जो यह कहा गया है कि गृहस्थाश्रममें भी ब्रह्मचर्यका पालन हो सकता है, उसका अर्थ संकुचित ही है। और हमने यहाँ उसका व्यापक अर्थ लिया है, संकुचित अर्थ नहीं ।

फिर भी एक दूसरी बात भी कही जा सकती है। यदि नाश करना हिंसा है, तो उत्पत्ति हिंसा है ही । इसलिए सन्तानोत्पत्तिमें हिंसा अवश्य है । जिसका नाश अवश्यम्भावी है, उसकी उत्पत्ति करनेमें हिंसा अवश्य है।

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lशनिवार, १३ नवम्बर, १९२६
 

महाभारत' अपूर्व ग्रन्थ है और उसमें भी 'गीता' विशेष रूपसे । इसमें स्थूल युद्धके वर्णनके निमित्तसे सूक्ष्म युद्धका दर्शन कराया गया है और बताया गया है कि जो लोग युद्धमें हारे, वे तो हारे ही, जो जीते उन्हें भी हारा ही समझो । पाँच-सात जीवित बचे, वे भी मरे-मरे ही बचे । धृतराष्ट्र बेहाल रहे और कुन्ती भी । पाँच भाइयों और छठवीं द्रौपदीका क्या हुआ, सो हम स्वर्गारोहण पर्वमें देखते हैं। वे तिल- तिल करके मरते हैं। युधिष्ठिर भी मंजिलके अन्ततक नहीं पहुँचते, इसीलिए व्यास कहते हैं कि अन्तमें धूल-धूल ही रहती है।

इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रयत्न नहीं करना चाहिए। एक जगह दैव बलवान है, तो दूसरी जगह पुरुषार्थ । पुरुषार्थका अर्थ है प्रयत्न; और परम-पुरुषार्थ है इस द्वन्द्वसे छुटकारा पाना । द्वन्द्वमें तो मुट्ठी भर धूल ही है। किन्तु इसी धूलका एक-एक कण अमुक स्थितिमें रत्न बन सकता है; यही बताना 'गीताजी' का आशय है । तीन गुण करोड़ों दिशाओंसे तुझे ताक रहे हैं। यदि उनसे प्रति क्षण मिलते हुए भी निर्लेप रहे तो तू जीत सकता है। त्रिगुणात्मक तीर देह और उसके भीतर निवास करने- वाले आत्माके ऊपर बरसते ही रहते हैं, किन्तु यदि आत्मा जाग्रत रहे तो वे चाहे जितने क्यों न बरसें, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते ।

जाग्रत आत्मा बननेकी शर्त क्या है ? कौन इस परिस्थितिको समझ सकता है ? यही बतानेके लिए अर्जुन-विषादयोग कहा गया है। अर्जुनका अर्थ है जिज्ञासु आत्मा । जबतक बुद्धि आतुर नहीं होती, तबतक उसमें जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती । जबतक बुद्धि प्रलोभनोंमें पड़ी हुई है, तबतक 'गीता' का उसके लिए कोई उपयोग नहीं है । 'गीताजी' का विद्यार्थियोंके लिए उपयोग है अथवा नहीं ? जिसमें श्रद्धा है, और जिसकी श्रद्धा अर्जुन बननेकी व्याकुलता है, उसके लिए 'गीता' उपयोगी है। शिक्षक कहता है कि भारतवर्षका क्षेत्रफल १९००x१५०० मील है। इसे माननेवाला विद्यार्थी हाथमें गज लेकर नापने नहीं निकल पड़ेगा। वह तो इसे मान लेता है। इसी तरह भूगोलके सिद्धान्तके अनुसार शिक्षक कहता है कि पृथ्वी गोल है और विद्यार्थी उसे मान लेता

१. साधन-सूत्रमें 'अहिंसा' है। यह भूल ही जान पड़ती है।