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पत्र : सी० नारायणरावको

करते हुए हमें बारह मिनट लग जाते हैं और इसलिए आधा पाठ हो चुकनेके बाद कुछ थकावट-सी लगती है। किन्तु यदि हम इसमें डूब जायें तो बच जायेंगे। महषि व्यासने इस विषयको कुछ इस ढंगसे रखा है कि हमें लगता है मानो हम ही विश्व- रूप दर्शन कर रहे हों। इस विश्वरूप दर्शनसे हमें अनुभव होता है कि जगत्‌में हमारा स्थान क्या है। कुछ भी नहीं। धूलके एक कण-जैसे हम हैं। विश्वमें, ब्रह्माण्डमें, तारा, ग्रह, सूर्य इत्यादिमें हमारा स्थान कितना नगण्य है। यदि शरीरका कोई रोम बोल सकता होता तो वह यही कहता कि मैं किस गिनतीमें हूँ। मैं तो जबतक शरीरका एक भाग बना हुआ हूँ, तभीतक मेरी कीमत है । यदि मुझे शरीरसे अलग कर दिया जाये तो मैं निकम्मा बन जाऊँगा। मुझमें जो चेतन-तत्त्व है वह नष्ट नहीं हो सकता और जहाँतक जड़-रूपका सवाल है, वह कितना भी विराट् क्यों न हो, क्षणिक है और नामरूपवाला है। ईश्वरके बाह्य स्वरूप, मूर्तिमन्त विराट् स्वरूपके प्रमाणमें हम कुछ भी नहीं हैं। ऐसी परिस्थितिमें हम किसकी हिंसा कर सकते हैं, और यदि हम किसीकी हिंसा करें ही तो उसके साथ ही हम स्वयं भी मारे जायेंगे । हम जैसे-जैसे इस बातको समझते चले जायेंगे, वैसे-वैसे भक्तिमें डूबते चले जायेंगे । आश्रमसे बाहर रहते हुए भी हम अपने नित्य-कर्मका पालन कर सकते हैं ।

[ गुजरातीसे ]

गांधोजोनुं गीता-शिक्षण

८७. पत्र : सी० नारायणरावको

आश्रम
 
साबरमती
 
२७ नवम्बर, १९२६
 

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला ।' आप अपनी स्थायी नौकरी क्यों छोड़ना चाहते हैं ? में समझता हूँ कि कोई भी व्यक्ति जीवनकी चाहे जिस स्थितिमें रहकर अवश्य ही देशकी सेवा कर सकता है; बशर्ते उसका पेशा अपने-आपमें ईमानदारीका हो । जो भी हो, नौकरी छोड़ने की इच्छाका कारण बतानेके साथ-साथ मुझे कृपया निम्नलिखित जानकारी भी दीजिए :

आपकी उम्र क्या है? क्या आप विवाहित हैं? क्या आपके बच्चे हैं? क्या आपके माता-पिता जीवित हैं? क्या आपके कोई अन्य आश्रित भी हैं क्या आपका स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता है ? क्या आप प्रतिदिन लगातार आठ घंटे शारीरिक श्रम करनेको तयार हैं? क्या आप केवल सफाई, खेती या रसोईके काम या चरखा

१. १९ नवम्बरको पत्र लिखते हुए नारायणराव “आनन्द और शान्तिपूर्ण जीवन बिताने के लिए,” अपनी नौकरी छोड़ने और आश्रम में आनेकी इच्छा व्यक्त की थी।

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