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पत्र : मीराबहनको

बातको 'नवजीवन' के किसी पिछले अंकमें पूर्ण रूपसे स्पष्ट कर चुका हूँ कि गाँवोंके कुत्ते तो गाँवोंके लोगोंकी रातको चोरों और बाहरी कुत्तों तथा दिनमें अन्य जान- वरोंसे रक्षा करनेवाले सबसे सस्ते और सबसे अधिक जागरूक सिपाही हैं। मैंने तो आवारा कुत्तोंतक को अन्धाधुन्ध मारनेकी बात नहीं कही है। मारनेके पहले अन्य बहुत- सी तरकीबें काममें ला देखनी चाहिए। मैंने जिस बातपर जोर दिया है वह है नगरपालिकाओंके लिए ऐसा कानून बना देनेकी बात जिसके अनुसार उन्हें पाले हुए कुत्तोंके सिवा अन्य कुत्तोंको मार डालनेका अधिकार प्राप्त हो जाये । इस मामूलीसे कानूनके फलस्वरूप कुत्ते निर्दय अवहेलनासे बच जायेंगे और महाजन भी सचेत हो जायेंगे। प्रयोजन अविचारपूर्ण और विवेकरहित दानशीलताको रोकना है। उस दान- शीलतासे जिसके कारण कुत्ते और वे मनुष्य भी जो भीख माँगते फिरते हैं सभीको नुकसान पहुँचता है- -- दानपर जीनेवालेको भी और उस समाजको भी जो इस प्रकारकी मिथ्या दानशीलताको बढ़ावा देता है।

सबसे योग्य महिला

एक पत्र लेखकने मुझे रोमके इतिहाससे नीचे दी हुई मनोरंजक कतरन भेजी है :

[ अंग्रेजीसे |

यंग इंडिया, २-१२-१९२६

९६. पत्र : मीराबहनको

सूरत
 
३ दिसम्बर १९२६ ]


चि० मीरा,

तुम्हारा तार मिला । आनन्द हुआ । ईश्वर तुमपर छाया रखे ।

बापू
 

श्रीमती मीराबाई

कन्या गुरुकुल

दरियागंज, दिल्ली

सप्रेम,

अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ५१८८) से ।

सौजन्य : मीराबहन

१. यहाँ नहीं दी गई है। इसमें तीन रोमनोंके बीचके उस विवादका विवरण था जो उनके बीचमें इस प्रश्नपर छिड़ा था कि उनमें से किसकी पत्नी सर्वश्रेष्ठ है। अन्तमें टाक्विनियसकी पत्नी सर्वश्रेष्ठ ठहरी क्योंकि जब अन्य महिलाएँ भोजनोत्सव कर रही थीं, तब ल्यूकेशिया करवेपर कपड़ा बुन रही थी।

२. ' चि० मीरा', ये शब्द देवनागरी लिपिमें हैं। मीराबहनको लिखे गये अन्य पत्रोंमें भी गांधीजीने 'चि० मीरा' देवनागरी लिपिमें ही लिखा है।

३. गांधीजीने मीरावहनको हिन्दी सीखने और धुनाई तथा कताई सिखानेके लिए दिल्लीके कन्या गुरुकुलमें भेजा था।