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१०३. पत्र : मीराबहनको

सोमवार [६ दिसम्बर, १९२६]
 

चि० मीरा,

मुझे उम्मीद थी कि आज तुम्हारा पत्र आयेगा । यह मेरा दूसरा पत्र है । पहला कार्ड था। मैं देखता हूँ कि अगर 'आत्मकथा '२ सोमवारको लिखी जाये, जैसा कि मैंने किया है, तो तुम्हारे पास भेजी जा सकती है। इसलिए यह रहा उसका अनुवाद । इसे दुरुस्त कर देना और उसी दिन डाकमें डाल देना । उस सूरतमें वह समयपर पहुँच जायेगा। उसी दिन न देख सको तो सीधे स्वामीके पास भेज सकती हो । वह तुम्हारे पास बुधवारको पहुँचना चाहिए और गुरुवारको भी डाकमें पड़ जाये तो मुझे शनिवारको समयपर मिल जायेगा । ... यहाँ 'यंग इंडिया' के लिए अहमदाबादकी डाकका आखिरी दिन रविवार है। अब तुम्हें मालूम हो गया होगा कि तुम्हें क्या करना है। यह बन्दोबस्त, जबतक में यहाँ हूँ तबतक जारी रहेगा।

रोलाँका खत भी साथमें है। स्पैरोने मुझे उसका अनुवाद करके दिया है। वह भी साथमें है। अगर तुम्हारे खयालसे यह ठीक हो तो मेरे लिए फिरसे उसका अनुवाद मत करना ।

प्रेम,

बापू
 

अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ५१८९) से।

सौजन्य : मीराबहन





१. तारीखको सूचना मीराबहनसे प्राप्त ।

२. आत्मकथा, ३-१२-१९२५ से यंग इंडिया में किश्तवार छपनी शुरू हुई। महादेव देसाई द्वारा किये गये अंग्रेजी अनुवादको गांधोजी संशोधनके लिए मोरावहनके पास अध्याय-अध्याय करके भेज देते थे।

३. अनुवाद यहाँ नहीं दिया गया है।

४. देखिए परिशिष्ट २ ।

५. कुमारी हेलेन हॉसडिंग।