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१११. पत्र : वसुमती पण्डितको

[८ दिसम्बर, १९२६ ]
 

चि० वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिला । बा आश्रममें ही है। मेरे साथ यहाँ दस-एक लोग हैं। महादेव, सुब्बैया, केशु, लक्ष्मीदासभाई, कृष्णदास, कमलाबहन, दक्षाबहन (तुम नहीं जानती) और रुखी । और फिर राजगोपालाचारी आदि अन्य जो भाई आये हैं वे अलग । क्या तुम्हें वर्धा नहीं आता है ? मैं यहाँ २० तारीखतक हूँ, ऐसा मानता हूँ । उम्मीद है तुम्हारी तबीयत अच्छी होगी । कुमारी हॉसडिंग भी साथ हैं। मीराबहन दिल्ली गई है।

बापूके आशीर्वाद
 

श्रीमती वसुमती धीमतराम

केलापीठ

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४७३) से ।

सौजन्य : वसुमती पण्डित

११२. पत्र : राजकिशोरी मेहरोत्राको

बुधवार ८ दिसम्बर, १९२६ ]

चि० राजकिशोरी,

तुमारा खत मीला । तुमको किसी जगह शिक्षाके लीये भेजना तो मुझको बहोत प्रिय है। परंतु इसका यह अर्थ है कि तुमने और प्रजोत्पत्तिका मोह छोड़ दीया है । ब्रह्मचर्यका पालन करनेका निश्चय कीया है, सेवामें हि अपना जीवन व्यतीत करनेकी प्रतिज्ञा की है, तुमारे मात पिता और ससुर सासका आश्रय छोड़ दिया है। उनकी आज्ञा भी है ? स्वाश्रयी बननेमें नौकर इ० की सेवाका त्याग करना पड़ता है। मेरा अवलोकन यह है की अबतक तुमने स्वादेंद्रिका संयम नहि कीया है। और न तुमने दूसरे भोगोंका त्याग कीया है। इन सब बातोंको सोच कर मुझे निश्चय पूर्वक लीखो । दरम्यान आश्रममें होते हुए भी तो बहोत सा अभ्यास हो सकता है सो करो ।

`बापूके आशीर्वाद

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ४९५४) से तथा जी० एन० ७४७९ से भी । सौजन्य: परशुराम मेहरोत्रा

१. डाकको मुद्दरसे।

२. डाककी मुहरसे।