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११३. उनकी अन्य सेवाएँ

मेरे एक मित्रने मुझे फीनिक्स (नेटाल) के 'इंडियन ओपिनियन की एक कतरन भेजी है। कुछ समय पहले इन पृष्ठोंमें जनरल स्मट्स द्वारा की गई एमिली हॉबहाउसकी प्रशंसा छपी थी। उनके भाषणमें एक बात छूट गई थी । मित्रने उसीकी ओर ध्यान खींचा है । कतरनमें एमिली हॉबहाउसके उस प्रयत्नका उल्लेख है जो उन्होंने बोअर-युद्धके बाद संकटग्रस्त बोअर- स्त्रियोंमें कताई और बुनाईके उद्योगको शुरू करनेके सम्बन्धमें किया था। उक्त अंश इस प्रकार है ।"

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ९-१२-१९२६

११४. स्वतन्त्रताका मूल्य

दिसम्बर १७७६ में अमेरिकाके स्वतन्त्रता-संग्राममें अंग्रेजोंके विरुद्ध युद्धमें रत सेनापति वाशिंगटनके सैनिकोंके नाम लिखे गये टॉमस पेनके सन्देशके कुछ अंश ग्रेगने मेरे पास भेजे हैं। वे यहाँ दिये जा रहे हैं :

यहाँ यह बात ध्यान देने लायक है कि शान्तिके सिपाहियों और युद्धके सैनिकों, दोनोंसे एक ही गुणकी कहाँतक आशा की जाती है। टॉमस पेनका यह सन्देश अहमदाबाद कांग्रेसके प्रतिज्ञा-पत्र के अनुसार १९२१ में संगठित स्वयंसेवकोंको भी, जिन्होंने विचार, शब्द और कार्यमें सर्वदा शान्ति रखनेका वचन दिया था, करीब-करीब अक्षरश: सुनाया जा सकता था और यह मौजूं भी होता । अगर स्वतन्त्रता कोई मूल्यवान वस्तु है तो चाहे तुम शारीरिक शक्तिसे उसे जीतो चाहे आत्मिक बलसे, यानी स्वयं कष्ट सहकर, किन्तु मूल्य तो उसका जबरदस्त ही चुकाना होगा। विकट परिस्थितियों में अहिंसावादीको भी साहस और वीरताकी अगर अधिक नहीं तो कमसे- कम उतनी आवश्यकता तो जरूर ही है जितकी तलवार पकड़नेवालेको । स्वराज्य चाहे हम हिंसासे लें चाहे अहिंसासे, स्वराज्य लेनेके लिए हमें सुख और चैनको तिलांजलि देनी ही पड़ेगी • उसमें विलासकी तो कोई बात ही नहीं । प्रतापने जिसे स्वतन्त्रता माना उसके लिए वह कंगाल बन गया । प्रह्लादने जिसे स्वाधीनता समझा उसके लिए उसने अपना शरीर नष्ट करनेके लिए सौंप दिया। मगर हममें अब भी

१. यहाँ नहीं दिया गया है।

२. देखिए “ पत्र : रिचर्ड बी० ग्रेगको ", २७-११-१९२६ । ३. यहाँ नहीं दिये गये हैं।