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पंजाबमें खादी

अब ऐसी आशा करनी चाहिए कि कुछ ही दिनोंमें हर लड़की अपनी रुई आप धुन लेगी और पूनियाँ बना लेगी, और शिक्षक लोग उन्हें खद्दर पहननेको कहेंगे। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है लड़कियोंको सूत कातनेका कारण पूरा-पूरा समझा देना और उनकी जरूरतोंके लायक वाजिब कीमतका खद्दर सुलभ कर देना । शिक्षकों- को लड़कियोंके माता-पिताओंसे भी सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और इस काममें उनका सक्रिय सहयोग प्राप्त करना चाहिए। सच्ची बात तो यह है कि ये सब काम तभी हो सकते हैं जब करनेवाले उसमें जी-जानसे लग जायें। इसका सबूत हमें अहमदाबादकी मजदूर शालाओंकी असाधारण सफलतासे मिलता है। अगर सभी कताई शिक्षक अपने-अपने लिए सूतकी परीक्षाका एक घरेलू यन्त्र बना लें तो बड़ा लाभ होगा। उस यन्त्रका वर्णन इन पृष्ठों में किया जा चुका है। सूत अगर मजबूत न हो तो अधिक गतिसे क्या फायदा? केवल धागा काढ़ना ही काफी नहीं है। जरूरत ऐसा धागा निकालनेकी है, जिसका ताना बनाया जा सके।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ९-१२-१९२६

११७. पंजाबमें खादी

चरखा-संघकी पंजाब शाखाकी भेजी हुई विस्तृत हिन्दी रिपोर्टका अ० भा० च० सं० के कार्यालय द्वारा तैयार किया हुआ सारांश नीचे दिया जा रहा है। मूलमें के कितने ही ब्योरे इस सारांशमें छोड़ दिये गये हैं। मूलके अनुसार ४२ केन्द्रोंमें खादीका काम हो रहा है। मैं चाहता हूँ कि पाठक समझ सकें, इसका क्या मतलब हुआ। इसका अर्थ है उन गाँवोंमें श्रमिकोंसे जीवन्त सम्बन्ध रखना और उनकी मेहनतके बदले उनमें धनका वितरण करना। बिना सोचे-विचारे शायद कोई यह कह उठे कि बनिये भी तो यही करते हैं। मगर इन मेहनतकश लोगोंका शोषण करनेके लिए उनके बीच जानेवाले बनियेमें और उस देशभक्तमें, जो उनसे काम करके पैसा लेनेको कहता है, बहुत बड़ा अन्तर है। चरखेके एक बार जड़ पकड़ लेनेपर उसका आकर्षण अदम्य होगा। इसके फलस्वरूप जो लोग मेहनत करने को तैयार हैं उनके घरोंसे, परिवारके छिन्न- भिन्न होनेकी नौबत आये बिना, भुखमरीका भूत भाग जायेगा। पंजाबके कामकी खूबी यह है कि वहाँका काम अबतक करीब-करीब स्वावलम्बी हो गया है। वहाँ बट्टे खाते डालने लायक रकमें हैं ही नहीं। सूत और प्रति गज दो आना बुनाई देनेके बदलेमें खादीका तैयार कपड़ा पा लेना वहाँकी एक बड़ी विशेषता है और इससे बहुत अधिक लाभ होनेकी सम्भावना है। मैं समझता हूँ कि यह बात केवल पंजाबके लिए ही सम्भव है, जहाँ, जैसा कि रिपोर्टमें कहा गया है, अभीतक बहुतसे स्त्री-पुरुष खद्दर पहनते आ रहे हैं। लाला किशनचन्द भाटियाको स बातका गर्व होना स्वाभाविक

१. यहीं नहीं दिया गया है।