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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही है कि उन्हें अपने ही यहाँ कम दामपर चादरें छपवा लेनेमें सफलता मिली। उन्होंने खादी प्रतिष्ठानका चरखा भी मँगाया है और उसके जैसा चरखा बनवानेमें उन्हें सफलता भी मिली है। और जगहोंकी तरह पंजाबमें भी खरीदारोंके अभावका रोना है । जिस रफ्तारसे खद्दर तैयार होता है, उस रफ्तारसे वह बिक नहीं पाता। सभीको देशके लिए मरनेकी जरूरत नहीं है; लेकिन क्या हम उसके लिए मैनचेस्टर या जापान- की मिलोंमें बने नयेसे-नये ढंगके कपड़ोंके साथ दाम और रूपमें मुकाबला न कर सकने तक खद्दर पहनना शुरू नहीं कर सकते ? अगर खद्दरके लिए हम एक भी पैसा अधिक न दे सकें या अपने कपड़ोंकी पसन्दगीमें थोड़ा भी संयम न बरत सकें तो हमारे स्वदेश-प्रेमकी कीमत ही क्या है ? पंजाबके पास कपास है, कातने-बुनने और व्यापारके लिए बुद्धि तथा शक्ति है । तब क्या पंजाबके लोगोंमें इतनी देश-भक्ति भी न होगी कि जिस रफ्तारसे खद्दर तैयार होता जाये उसी तेजीसे वे उसे खरीदते भी जायें ? यह बात तो होनी ही नहीं चाहिए कि मुझे या जमनालालजीको या किसी दूसरेको ही खद्दरके लिए पैसा जमा करने या उसे बेचनेके लिए वहाँ जाना पड़े।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ९-१२-१९२६

११८. अलौकिकतावादका नाश हो !


सेवायें सम्पादक,यंग इंडिया',

महोदय,

औरंगजेबने काशीके विश्वनाथ मन्दिर जैसे पूजा-स्थलको भ्रष्ट किया और तोड़ा, और जब आप अपने 'मजहबमें विश्वास रखनेवाले' उस-जैसे मनुष्यके इस कार्यके औचित्य और अनौचित्यपर विचार करते हैं तो कहते हैं कि उसने अपने 'धर्म' के अर्थात् इस्लामके 'अनुरूप कार्य नहीं किया ( 'यंग इंडिया', ४-११-१९२६) । क्या आप इस प्रकार यह मानकर नहीं चल रहे कि आप इस्लामके बारेमें स्वयं इस्लामके नबीसे अधिक जानते हैं? क्योंकि आपको जानना चाहिए कि स्वयं मुहम्मदने, जिन्हें औरंगजेब अपना सबसे बड़ा आदर्श मानता था, शत्रुओंको जीतकर मक्का शहरमें घुसनेपर मूर्तिपूजासे सम्बन्धित वहाँको समस्त वस्तुओंको और पूजाकी जगहोंको बरबाद कर दिया था। इसमें अपवाद काबाका पत्थर और कुछ ऐसी ही दूसरी चीजें थीं जिनमें स्वयं उनको भी विश्वास था। इस प्रकार आपको या तो यह कहना चाहिए कि (१) मुहम्मद ऐसे धार्मिक पुरुष थे जो केवल उसी बातको मानते थे जिसमें स्वयं उनका विश्वास होता था, किन्तु तब आपकी यह बात आपकी उस पहले कही हुई बातसे मेल नहीं