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अलौकिकतावादका नाश हो !

खायेगी कि मानव जातिके समस्त महान् धर्म-शिक्षक ऐसे लोग थे जिनमें ईश्वर- का रूप प्रकट हुआ था । (देखिए 'यंग इडिया', ८-७-१९२६, पृष्ठ २४४ स्तम्भ २) ; अथवा (२) अरबके इस नबी (ईश्वर उन्हें शान्ति दे ! ) के मूर्तिपूजा विरोधी समस्त कार्योंको आलंकारिक कह देना चाहिए, जैसा कि जब आप दूसरे धर्मोक धर्मग्रन्थोंमें ऐसी कोई बात देखते हैं जो शब्दशः लेनेपर आपकी समझमें नहीं आती या आपकी बुद्धिमें नहीं जँचती तो आप उसे प्रायः आलंकारिक मान लेते हैं; अथवा (३) आपको मुहम्मद साहबकी जीवन कथाको जिसे सभी ठीक मानते हैं, असत्य कहकर मानने से इनकार कर देना चाहिए। यदि कोई चौथा रास्ता हो तो आप बतानेकी कृपा करें; किन्तु कृपया आप यह याद रखें कि औरंगजेबको समस्त सुन्नी उलेमाओंने और इतिहासकारोंने 'जिन्दा पीर' कहा है। इन लोगोंने औरंगजेबके मन्दिर विध्वंसके कृत्योंके विरुद्ध, जहाँतक मैं जानता हूँ, कुछ नहीं कहा है, किन्तु इसके विपरीत उनमें से कईने उसके इन कृत्योंकी सराहना की है।

मक्का, मदीना और तैफमें वहाबी सम्प्रदायके अनुयायी इन्न सऊदने धर्म स्थानोंको जो अपवित्र किया, उनको ध्वस्त किया और कत्ले-आम कराया उसके विषय में भारतके उलेमाओंमें अलग-अलग रायें हैं और जबकि उलेमाओंके एक वर्ग (अहले हदीस) ने इब्न सऊदके इन कृत्योंको इस्लाम-सम्मत बताया है, वहीं दूसरी ओर दूसरे उलेमा (शिया लोग और हनफी आदि) उन्हें इस्लाम- विरुद्ध मानते हैं। क्या इस बातको ध्यान में रखते हुए ऊपर बताया तथ्य महत्त्वपूर्ण नहीं लगता ? लेकिन मैं अभीतक एक भी ऐसे विद्वान और धर्म- प्राण उलेमासे नहीं मिला हूँ जो हिन्दुओंके पवित्रतम धर्मस्थलोंपर औरंगजेब द्वारा किये गये जुल्मोंकी हृदयसे भर्त्सना करता हो । वे तो उन्हीं सनातनियोंकी तरह हैं जो बस चले तो भारतमें अस्पृश्यता निवारणका प्रयत्न करनेके लिए आपको उतनी ही तत्परतासे फाँसीपर चढ़ा दें जितनी तत्परतासे वे दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंको भारतीयोंके साथ अस्पृश्यों-जैसा व्यवहार करनेके कारण फाँसीपर चढ़ा देंगे ।

इस प्रकार में इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि अलौकिकताका दावा करने वाले सभी धर्मोमें संघर्ष और असंगतियोंका होना अनिवार्य है। अतः ऐसे धर्मोको आप कितना ही उदार बनानेकी कोशिश करें लेकिन आप उन्हें तब तक उदार नहीं बना सकते जबतक आप उनमें इतना सुधार न कर दें कि उनका मूल स्वरूप ही खतम हो जाये। उन्हें सुधारनेका तरीका यही है कि उन्हें खतम कर दिया जाये। उदारवाद उनको खतम करके ही लाया जा सकता है। मेरा यही मत है; और मैं जितना ही सोचता हूँ मेरा यह मत उतना ही दृढ़ होता जाता है।

लगता है राजा युधिष्ठिरने सत्यकी कुछ झलक पा ली थी, क्योंकि तभी उन्होंने यक्षको इस प्रकार उत्तर दिया था :