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पत्र : मीराबहनको

दैवी शक्तिके समर्थकोंको देने होते हैं उतने ही बुद्धिवादियोंको भी देने होते हैं। कुछ अत्यन्त शुद्ध और उत्कृष्ट लोग जब अपने विश्वासके आधारपर नहीं बल्कि अपने अनुभवके आधारपर इस बातकी गवाही देते हैं कि कोई एक ऐसी चीज अवश्य है जो ज्ञानेन्द्रियोंसे परे है तो क्या यह उनका ढोंग और भ्रम मात्र है ? मनुष्यकी पाँच ज्ञाने- न्द्रियोंसे परे कुछ नहीं है, ऐसा फतवा दे देना क्या दम्भपूर्ण दावा करना नहीं है ? इस बातको कौन ‘अनुभव' नहीं करता कि ऐसे भी रहस्य हैं जिनकी थाह बुद्धि नहीं ले सकती ? हम नित्य देखते हैं कि जो लोग श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं उनके चरित्रमें एक आकस्मिक परिवर्तन हो जाता है । क्या इस बातसे निर्विवाद रूपसे यह प्रकट नहीं होता कि ऐसी बातें हैं जिनको हम बुद्धिसे समझ या समझा नहीं सकते ? लेखकने जिस प्रसिद्ध श्लोकको उद्धृत किया है उसमें भी आखिर यह कहा गया है कि धर्मको हृदयसे ही जाना जा सकता है, उसे अन्यथा जानना कठिन है । और जिस महान् ग्रन्थसे यह श्लोक लिया गया है उसके रचयिता भी स्वयं दैवी शक्तिमें विश्वास रखते थे । सृजन और संहारका रहस्य स्वयं ही दैवी शक्तिका एक जीता-जागता प्रमाण है । जब मनुष्य अपनी बुद्धिसे जीवकी सृष्टि करनेमें सफल हो जायेगा, तभी वह इस प्रकारकी हँसी उड़ानेका अधिकारी बनेगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ९-१२-१९२६

११९. पत्र : मीराबहनको

वर्धा
 
९ दिसम्बर, १९वर्धा२६
 


चि० मीरा,

तुम्हारे दोनों पत्र मुझे एक ही दिन मिले। मुझे खुशी है कि तुमने इतने विस्तारसे लिखा । यह आदत बनाये रखना । यहाँ जब घूमने जाता हूँ, तुम्हारी याद आती है । हम उसी पुराने रास्तेपर जाते हैं। मुझे आशा है कि तुम्हें मेरे दोनों पत्र मिल गये होंगे । गौहाटी जानेके बारेमें अभी कुछ पक्का नहीं है। तुम हकीमजी और मौ० मुहम्मद अलीसे अवश्य मिलना । तुम्हें उनकी पत्नी और बेटियोंसे भी मिलना चाहिए।

सस्नेह,


बापू
 

श्रीमती मीराबाई

कन्या गुरुकुल

दरियागंज, दिल्ली.

अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू ० ५१९०) से ।

सौजन्य : मीराबहन

१. गौहाटी में होनेवाले कांग्रेस अधिवेशनमें भाग लेनेके लिए।

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