१२२. पत्र : सुरेश बनर्जीको
प्रिय सुरेश बाबू,
आपका पत्र मिला । आशा है कि आप अपने हृदय-रोगसे पूरी तरह छुटकारा पा जायेंगे ।
मेरी समझ में नहीं आता कि प्रफुल्ल बाबूके निर्णयपर खुश होऊँ या दुःख मानूं । यह सब तो निर्णयके पीछे जो मंशा है, उसपर निर्भर करेगा। मैंने उन्हें लिखा है कि यदि वे चाहें तो वर्धा आ जायें। उनके प्रतिष्ठानसे नाता तोड़ लेनेसे सतीश बाबूको गहरा सदमा पहुँचा है। आपको किसी दिन वर्धा जरूर आना चाहिए और विनोबासे परिचित होना चाहिए । यदि में गौहाटी गया तो लौटते समय आपके साथ कुछ दिन बितानेका अपना वायदा भूला नहीं हूँ । मैं अभी तय नहीं कर पाया हूँ ।
डा० सुरेश बनर्जी
अभय आश्रम
कोमिल्ला
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७५७) की माइक्रोफिल्मसे ।
१२३. पत्र : रामदेवको
प्रिय रामदेवजी,
आपका पत्र मिला । मुझे 'फ्रैंक्स ऑफ एंग्लिसाइज्ड इंडियन्स' के उद्धरणवाले पत्रके मिलने की याद नहीं पड़ती। यदि आप मुझे उस पत्रकी एक नकल भेज दें तो मैं देखूंगा कि में उसका क्या उपयोग कर सकता हूँ। मैं आपके लघु लेखकी प्रतीक्षा करूँगा ।
आप चाहें तो योजना प्रकाशित कर दें; या फिर उसके बारेमें जैसा चाहें, कर सकते हैं ।