१२५. पत्र : हकीम अजमलखाँको
प्रिय हकीम साहब,
आश्रमसे रवाना होते समय आपका पत्र मिला। पत्र आपके सचिवका लिखा हुआ था। मैं पत्रका आशय समझ नहीं सका हूँ। मुझे नहीं मालूम कि श्री सी० विजयराघवाचारीने आपको क्या लिखा है। क्या आप चाहते हैं कि मैं उन्हें पत्र लिखूं ?
आशा है कि अब आप पूरी तरह फिर स्वस्थ हो गये होंगे। पता नहीं कि आप इन दिनों सार्वजनिक जीवनमें कुछ दिलचस्पी ले रहे हैं या नहीं। मैं चार दिन पहले वर्धा आया था; और शायद कुछ दिनों यहाँ रहूँ । इस बार मैं गोहाटी जाना टालना चाहता हूँ और मैं मोतीलालजी तथा अन्य लोगोंको इसके लिए राजी करनेकी कोशिश कर रहा हूँ कि वे मुझे मुक्त कर दें।
हकीम साहब अजमलखाँ
शरीफ मंजिल
दिल्ली
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७६०) की फोटो-नकलसे ।
१२६. पत्र : एन० एस० हार्डीकरको
९ दिसम्बर, १९२६ |
प्रिय डा० हार्डीकर,
मैं आपके पत्रका उत्तर इससे पहले सिर्फ इस कारणसे नहीं दे सका कि मुझपर कामका बहुत बोझ था । और जिस समय मुझे आपका पत्र मिला, 'यंग इंडिया' की प्रति भी मेरे सामने नहीं थी ।
मुझे कर्नाटक खींचकर ले जानेके लिए आपको एक लाखकी खद्दर बेचनी होगी और खद्दर कार्यके लिए एक लाख इकट्ठा भी किया जा सकना चाहिए। आपका कहना है कि आप कर्नाटकके राजनैतिक जीवनको नया स्वरूप देनेके लिए मुझे वहाँ आनेपर राजी कर लेंगे। क्या आप खादीके राजनैतिक जीवनको नया स्वरूप दे सकनेकी